बुधवार, 3 सितंबर 2008

रास्ते का पत्थर......

सोंचा नहीं था कि रास्ते में कुछ आ जायेगा
लेकिन आ ही गया...
साला रास्ते में, वो पत्थर
मुश्किल ये थी कि हटाऊं कैसे
आखिर मनुष्य जो हूं...
लोगों को हटाने की सोंच सकता हूं
लेकिन एक पत्थर को हटाने में जान निकल जाती है...
हुआ वही मैं गिर गया ठोकर उस पत्थर की खाकर
फिर भी नहीं हटाया
सोंचा मैं क्यों हटाऊं जब और भी है इस दुनिया में
सोंच तो दुनिया के बारे में रहा था
लेकिन ये बात नहीं सोंच पाया कि इस दुनिया में एक मासूम मै भी हूं
और लग गया इंतजार करने कि कोई आकर उठा देगा वो पत्थर
इंतजार करता गया- इंतजार करता गया
लेकिन कोई दूसरी दुनिया से नहीं आने वाला था
दरअसल वो पत्थर हमी को हटाना था...
इसलिये रास्ते के पत्थर को हमेशा हटा देना बिना किसी का इंतज़ार किये...

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