सोमवार, 29 मार्च 2010

महामना लंपटेश्वर चमचा, सर्वत्र व्याप्तये

चमचों का इतिहास कलिकाल से चला आ रहा है। सबने अपने अपने चमचे बनाए। और चमचे थे कि बनते चले गए। कलिकाल की परंपराओं को जीवत रखना वर्तमान का ठेका है। इस लिहाज़ से हर कोई परंपराओं का ठेकेदार है। चमचैली परंपरा इन्हीं कारणों से जीवित है। सभी इसको जीवित रखना चाहते हैं। क्योंकि बगैर चमचा आज के युग में कोई कार्य नहीं हो सकता। चमचा बनना मिसाल है, ताकत है, बुद्धि है, विज्ञान है, जुगाड़ है, और मजबूरी भी है। जिसके पास ऊंचा ओहदा है। उसके पास चमचों की कमी नहीं। या यूं समझें, चमचे उसी के पास होंगे जो ऊंचे ओहदे पर विराजमान होगा। कुलयोग किया जाए तो चमचा सूक्ति कुछ इस प्रकार बनती है। ‘महामना लंपटेश्वर चमचा, सर्वत्र व्याप्तये’।
गौर कीजिएगा, कि कांग्रेस वाली बड़ी मैडम के पास खूब चमचे हैं। उत्तर प्रदेश वाली बहन जी के पास खूब चमचे हैं। बीजेपी के नवीन अध्यक्ष के कई चमचे बन गए हैं। ठीक उसी प्रकार से एक मैडम और भी हैं। जिनके खूब चमचे हैं। इन चमचों के पास बुद्धि है, विवेक है, चालाकी है, मिथ्या है, और है पटाने का ढंग। जो एक कुशल चमचे के लिए बेहद जरुरी है। ऐसे भी कह सकते हैं। कि इतने सारे गुणों से लबरेज़ इंसान ही एक सफल चमचा हो सकता है। मैडम के इर्दगिर्द व्याप्त चमचे हमेशा ही बिलबिलाते रहते हैं। कभी बिजली के बिल के लिए। कभी स्टेशनरी के बिल के लिए, कभी फोन के बिल के लिए, कभी किसी के लिए। बस मैडम पटाऊ तकनीक हमेशा ढूंढते रहते हैं। और ऐसी तकनीकों की इनके पास कमी भी नहीं रहती । पिछले कई दिनों से चमचों ने संगठन में विकास मेरा आशय विनाश से है, की ऐसी बयार बहाई है कि गुलाब की खुशबू भी अब जुलाब के बाद का रिजल्ट हो चुकी है।
महामना लंपटेश्वर समुदाय पिछले कई दिनों से प्रगति पर है। और जो लंपट नहीं हैं। वो विकासशील भी नहीं हैं। यानि लंपट और विकास का भी सीधा संबंध होता है। लंपट हो तो विकास है। लंपट नहीं हो। तो विकास भी नहीं है। लगता है विकास की आधुनिक परिभाषा भी लंपटों के हाथों से ही लिखी जाएगी। और टुटपुंजिए धरे के धरे रह जाएंगे।
वैसे एक बात तो है कि टुटपुंजिए अपनी गैरविकास तकनीकों को लंपटों पर मढ़ देते हैं। क्योंकि वो विकास कर नहीं पाते । और लंपटों के विकास से ईष्या होती है। बेचारे टुटपुंजिए आज भी विकास की राहें गढ़ने को सड़कें खोदे पर पड़े हैं। और लंपट हैं कि जोर-जुगाड़ से सड़क बनाने का क्रेडिट खुद ले लेते हैं। बाप बड़ा न भइया, सबसे बड़े लंपट भइया। बड़े इसलिए कि वो जानते हैं कि विकास किस विधि करना है।
कुछ रोज की बात है । एक लंपट चमचा बड़ा उदासीन नजर आ रहा था। वो मैडम की चमचई से आजिज आ चुका था। क्योंकि उसकी चमचागिरी का पारिश्रमिक उसे नहीं मिल पा रहा था। कुछ ऐसा भी था। कि बड़े चमचे छोटे चमचे पर हावी हो चले थे। जो उसका पारितोषिक मार रहे थे। मैने उसके मजनू छाप चेहरे को देखकर उससे कुछ पूछा तो नहीं। लेकिन उसने खुद ही बता दिया । कि भइया, मैडम बड़ी हराम हो गई है। जो कुछ अच्छी जुगाड़ चल रही थी। वो अब नहीं हो पा रही है। मैने कहा, भइया देखो गलती मैडम की नहीं । गलती तुम्हारी है। तुम चमचागिरी का प्रमोशन नहीं ले पाए। और दूसरे तुमसे बड़े कम समय में बड़े चमचे बन बैठे। तुम्हारे पास तो चमचागिरी का पांच साल का अनुभव था। लेकिन तुम अनुभव का फायदा ही नहीं उठा पाए। जरा उन्हें देखो पांच महीनों में ही चमचागिरी के मैनेजिंग एडिटर हो गए हैं। मैडम की सारी व्यवस्थाएं देख रहे है। आलम ये है प्यास मैडम को लगती है। तो पानी वो पी लेते हैं। दिसा मैडम को लगती है। तो मैदान वो हो लेते हैं। सिग्नेचर मैडम के होने होते हैं। कर वो देते हैं। वाकई मैडम ने बड़ी जल्दी प्रमोशन दे दिया उसे। और तुम हो कि। हुंह धिक्कार है तुम्हारी चमचागिरी पर।
इतना सुनने के बाद हैरान परेशान छोटा चमचा बोला यार क्या बताऊं मेरी मजबूरी थी। जो मैडम के साथ हो लिया। ईमान-धर्म सबकी बलि देकर उनका कार्य निपटाता रहा । लेकिन ढपोरशंखों ने मेरी पीठ में ही छुरा घोंप दिया। मुझसे ही चमचई के सारे गुण सीखे और मेरे ऊपर ही उनका प्रयोग भी कर दिया। मैने कहा, तो अब भुगतो। ओखली में सिर दिया था। और मूसलों के वार से चोट लगती है।
बेचारे चमचा जूनियर की हालत खस्ता थी। और मैं उसे ऐसे सुना रहा था। जैसे वो मेरा कोई दुश्मन हो। उसके दुख और दर्द की सीमाओं का कोई ओर छोर नहीं था। वो कुत्सित हो चुकी व्यवस्था से त्रस्त था। लेकिन ये बीज उसी के बोए हुए थे। जो अब फल के रुप में उसके सामने आ रहे थे। चूल्हे में अगर कंडे डालो तो धुआं होता ही है। उस धुएं से आंखों में जलन भी होती है। चमचा जूनियर भी कुछ ऐसा ही कर बैठे थे। आधुनिकता के दौर में चूल्हा जलाया और उसमें कंडे ठेल दिए । अब बगैर धुएं आग की गुजारिश कर रहे हैं। जो फिलहाल संभव नहीं। धुएं का कष्ट तो झेलना ही पड़ेगा।

5 टिप्‍पणियां:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

बन्धु चमचा राखिये बिन चमचा सब सून.

डॉ० डंडा लखनवी ने कहा…

vah! bhut sundar aor marak hai aap ko vayangya.

मधुकर राजपूत ने कहा…

चमचा हर काम का टिकट है। यस मैन होता है। बॉस से लात खाए तो भी बताए कि बॉस ने रबड़ी खिलाई है। लोकतंत्र के विकास में चमचों का बड़ा योगदान है। हरिशंकर परसाई का व्यंग्य पढ़िए 'चमचे की दिल्ली की यात्रा'

Brajdeep Singh ने कहा…

aapke is vyakhaan ko padh ke laga ki jaise hum apni kuch sanskriti ko rudhi vadita ko jevit rakhna chahte hain ,baise hi ye bandhu apne molik adhikar chamchagiri ko jevit rakhna chahte hain ,magar ye kalyug,jiska doosra naam hona chahiye tha kamyug,competition ki shortform,use aage badhne hi nahi derahi hain ,kyoki aajkal har cheej main jabardast competition ho raha hain ,aur ye to competition ka sabse bada kshetra hain
jahan par ye bandhu maar kha gye hain ,mujhe to is kshetra main badi sambhanye nazar aa rahi hain
jaisi ki kuch crash course start kar dene chahiye :ki kaise bane apne boss ke sabse bade chamche,hum sikhaynge apko bus 30 dino main ; aayiye aur seekhye sabse bade chamche banne ke snadar treeke
kyon anupam ji kya kehna hain aapka is baare main?...............

Unknown ने कहा…

प्यारे छोटे भइया अभय आइडिया अच्छा सुझाया है। कुछ दिनों में एक और ब्लॉग चमचा क्लासेज़ पर लिखा जाएगा। जिसका क्रेडिट मैं आपको पहले से ही देता हूं।