शुक्रवार, 30 मार्च 2012

रेडियो नहीं रोटी (सरकारी रहम से रोटी की जुगाड़)

सुशासन बाबू संचार क्रांति हमें क्या देगी ? अब ऐसा एक सवाल बिहार के महादलित अपने नेता नीतीश कुमार से पूछ रहे हैं। आपके दिमाग में सवाल जरुर आया होगा कि सिर्फ महादलित ही ऐसा क्यों सोच रहे होंगे ? तो इसका जवाब है कि बिहार सरकार ने दूसरे राज्यों की तरह उनके उद्धार के लिए कई योजनाएं चला रखी हैं। मसलन कई तरीकों के रंग बिरंगे कार्डों की योजनाएं महादलितों के सपनों की दुनिया को रंगीन करने के लिए रजिस्टरों में दर्ज कराई गईं हैं।लेकिन ऐसे लाल नीले पीले कार्डों से किसी की दुनिया में रंग भरे नहीं जा सकते। वो भी तब तक, जब तक कि किसी योजना को धरातल पर न उतार दिया गया हो। ये बात भी अलग है कि धरातल पर उतरने के बाद भी ये योजनाएं आज बिचौलियों की भेंट चढ़ती जा रही हैं। बिहार महादलित विकास मिशन करीब 89 लाख 90 हज़ार महादलितों का उद्धार करने के लिए बिहार के 37 ज़िलों में काम कर रहा है। सूबे की 21 महादलित जातियों पर किया जाने वाले दफ्तरी कार्य बेहद सराहनीय है। इन सभी महादलितों के लिए सरकार ने कुछ न कुछ सोच रखा है। एक ऐसी ही योजना है महादलितों को रेडियो मुहैया कराने की। महादलितों को मुख्यधारा में लाने एवम् प्रभावी जीवन दृष्टि बनाने के लिए इस योजना के तहत प्रत्येक परिवार को रेडियो खरीदने के लिए लिए 400/- रु0 दिया गया। यहां सरकार का मकसद था कि सूबे के उन पिछड़े राज्यों तक संचार क्रांति को पहुंचाया जाए। जहां अब तक विकास की रोशनी नहीं पहुंच सकी है। कम से कम महादलित इस बात पर तो इतरा ही सकें कि उनके घर में संचार क्रांति के नाम पर एक रेडियो सरकार द्वारा पहुंचा दिया गया है। रेडियो की इसी योजना के साथ महादलितों की पीर शुरु होती है। आपको यकीन तो न होगा कि कोई सरकारी योजना किसी के लिए पीर कैसे बन सकती है? लेकिन ये कड़वे घूंट की ऐसी सच्चाई है जिसे महादलित हर रात पिया करते हैं। दरअसल नीतीश सरकार ने जिन महादलितों को रेडियो बांटे हैं उन महादलितों के पास इतने भी पैसे नहीं हैं कि वे अपनी दिन भर की रोटी की जुगाड़ कर सके। दिन भर अपने हाड़ को गलाते महादलित जैसे तैसे अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं। ऐसी स्थिति में जब बात रेडियो में सेल डालने की आती है। तो जिनके रेडियो के सेल जवाब दे गए । उन रेडियो में सेल आज तक पड़े ही नहीं। इसलिए रेडियो बेंचकर लोग रोटी की जुगाड़ कर रहे हैं। जो रेडियो सेलविहीन हो चुका है वो बच्चों के हाथ में महज़ एक खिलौने की तरह शोभा बढ़ाता दिखाई दे रहा है। यहां भी कहानी में एक पेंच है, जो रेडियो सरकार ने महादलितों के बीच बंटवाए हैं वो आधुनिकता के हिसाब से बेहद भारी और उनका मेंटिनेंस बहुत ज्यादा है। हर महीने उन रेडियो में तीस रुपए के सेल लगाने पड़ते हैं। महादलितों के लिए तीस रुपए की ये राशि एक दिन की रोटी की व्यवस्था कर देती है। इस लिहाज़ से रेडियो की ये योजना महादलितों के लिए अभिषाप जैसी बन गई है। हो सकता है कि जब आपकी ये लुभावनी योजना महादलितों तक पहुंची हो तो सभी के चेहरों पर खुशी का माहौल दिखा हो। लेकिन नीतीश जी आज आपका सरकारी रहम इन महादलितों के काम नहीं आ रहा है। भूखा पेट कोई भजन नहीं सुनना चाहता। जब महादलितों को भूख लगेगी तो संचार क्रांति काम नहीं आएगी। वैसे भी जिस संचार क्रांति को आपने रेडियो के ज़रिए गांव गावं तक पहुंचाने की कोशिश की है वो संचार क्रांति महादलितों को बहुत महंगी पड़ रही है। एक महादलित औरत से जब रेडियो के बारे में कुछ पूछा जाता है। तो उसका पहला जवाब यही होता है कि रोटी की व्यवस्था करें, या रेडियो की मरम्मत कराएं। ऐसी स्थिति बेहद भयानक है। कि जिस राज्य में मुफलिसों पर सरकारें रहम करती हैं। उसी रहम को बेंचकर वो लोग अपने लिए एक दो दिन की रोटी का इंतज़ाम कर लेते हैं। बिहार के हाकिम आपको ये बात समझनी होगी कि रेडियो से पेट नहीं भरता, अगर पेट किसी का भरना है तो उन्हें रोजगार देना होगा। ये हम नहीं वो लोग भी कह रहे हैं जिनकी ज़िंदगी अभावों के चलते जहन्नुम बन गई है। ये ठीक है कि आप (नीतीश) उनके बारे में सूचना क्रांति के नज़रिए से देखते हैं। लेकिन ऐसी सूचना क्रांति का कोई क्या खाक करेगा जब पेट फाकों को मजबूर होगा। हुजूर आप अपने सरकारी रहम की गत देखिए। सोचिए कि ये महादलित लोग आपके रहम को बेंचकर रोटी की जुगाड़ कर रहे हैं। बस इतना समझिए कि ये अपनी शिकायतें आप तक कभी नहीं पहुंचा सकेंगे। हम तो बस एक ज़रिया भर हैं। तय आपको करना है कि हाकिम अपनी रियाया को अब कितना करीब से जानेगा। क्योंकि ये बात याद रखिए लोग सरकारी रहम से रोटी की जुगाड़ कर रहे हैं।

शनिवार, 17 मार्च 2012

हे धरती के भगवान

हे धरती के भगवान।

तुमको मेरा कमर को आधार मानकर 45 डिग्री पर प्रणाम। पुतलियां पथरा गई थीं अरसे से टीवी देख देख कर । और तुम्हारे रनों का टोटा हर रोज़ मेरी चांद को टिपियाता। मैं झल्लाता । लेकिन तुम्हें मेरी झल्लाहट पर रहम न आता। लेकिन आज मैं सारे निजी कार्यों से निवृत्त होकर तुम्हारी अर्चना में जुटा था। सुबह से धूप दीव नैवेद्य के साथ तुम्हारी ईश्वर स्वरुप महिमा मंडित बल्ला उठाऊ तस्वीर का पूजन कर रहा था। पड़ोस से पंडित श्री श्री 108 कदाचित तामलोट लोटन प्रसाद सत्यानासी काशी निवासी पंडित राधे श्याम उपाध्याय को भी बुलवाया था। इस आशा में कि कहीं मुझसे पूजा में कोई मंत्र पढ़ गया तो तुम फिर शतक से चूक जाओगे। और मैं अपनी टांट को टिपियाता फिरुंगा। लेकिन तुम हे धरती के भगवान आज बरेली रोजा पैसेंजर की तरह जब चल निकले तो फिर बरेली से चलने के बाद रोजा ही रुके। तुमने वो महा सुस्त शतक बना ही डाला। जिसका इंतज़ार पिछले एक साल से आपके भक्त कर रहे थे। हे सट्टेबाजों के ईष्ट तुम मेरे घनिष्ट हो अब मुझे ये पता चल गया है। क्योंकि जिस धैर्यपूर्वक पारी में तुमने अपनी जीवटता की मिसाल पेश की है उसकी आशा किसी बुज़ुर्ग खिलाड़ी से ही की जा सकती है। तुमने 147 गेंदों का संहार किया। तब जाकर बड़ी मुश्किल से 114 रन जुटा सके। हे धरती के भगवान तुम्हारे धैर्य को मेरा फिर उसी डिग्री पर प्रणाम। हे क्रिकेट जगत के राजहंस तुम इस युग के ईसा हो। क्योंकि ईसा भी अपने विरोधियों के लिए कहा करते थे कि हे भगवान इन्हें क्षमा करना ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं। तुम भी तो यही कहते हो। लोग तुम्हारी आलोचना करते हैं। और तुम उनसे कुछ नहीं कहते अपना बड़प्पन दिखाकर उन्हें माफ कर देते हो। हे सचिन प्रभू आज तुम्हारे ही महा सुस्त शतक की बदौलत भारत बांग्लादेश जैसी पिद्दी टीम के सामने 289 बनाने लायक हुआ। लेकिन प्रभू की तो लीला अपरंपार होती है। देखिए कैसे झोली में गिर गया मैच बांग्लादेश की। हे दीन दुखियारे सटोरियों के महा प्रभू तुम्हारे महाशतक को मेरा महा प्रणाम। तुम ऐसे ही सतत खेलते जाना। किसी की न सुनना। साल में एक सैकड़ा मार देना। साल भर लोग तुम्हारी आलोचना करेंगे उसके बाद जब तुम शतक वीर बनोगे। तो टीवी पर ब्रेकिंग चलेगी। अखबार में मोटी मोटी सुर्खियां छपेंगी। क्रिकेट का बूढ़ा भगवान आज भी महान। तुम ऐसे ही क्रिक्रेट खेलोगे तो एक दिन तुम्हारा औसत कोर्टनी वॉल्श सा हो जाएगा। 42 से घटकर तुम्हारा औसत 4.2 तक आ जाएगा। तुम यहां भी रिकॉर्ड बना दोगे। क्योंकि तुम्हें सचिन रिकॉर्ड तेंदुलकर भगवान भी तो कहा जाता है। हे देवी अंजलि के देवता अब तुम्हारी संतान के क्रिक्रेट खेलने का वक्त आ गया है। तुम आदेश दोगे तो मैं उसके लिए भी अगरबत्ती जलाऊंगा । पंडित राधेश्याम को बुलवाऊंगा। लेकिन अब मेरी तुमसे एक गुहार है तुम क्रिकेट के सन्यासी हो जाओ। कुछ दिन घर बैठो । परिवार के साथ घूमो-फिरो। और फिर कुछ दिन बाद हमें कमेंट्री बॉक्स में दिखो। कृपया मेरी किसी भी बात को अन्यथा न लेना। मैं तो बस तुमसे विनम्र निवेदन कर रहा हूं। कहीं तुम नाराज़ न हो जाना। मैं तुम्हारी नाराज़गी को बर्दाश्त न कर पाऊंगा। सालों से क्रिकेट देख रहा हूं। तुम्हें मैने भगवान के रुप में पाया है। भगवान को कोई कुछ कहता है तो मुझे बुरा लगता है। इसलिए मेरी भी इज्जत का ख्याल रखना। एशिया कप के बाद मैदान में दिखाई न देना। मैं तो अपने भगवान को अब कमेंट्री बॉक्स में देखना चाहता हूं। हे दयानिधान मेरी गुहार पर गौर फरमाना। क्योंकि कमेंट्री बॉक्स में भी रोजगार के बड़े साधन है। इतना ही कहूंगा । ज्यादा वक्त न मेरे पास है और न ही तुम्हारे पास। चिट्ठी पहुंच जाए तो जवाब जरुर देना। भूल चूक लेनी देनी। तुम्हारा बनवारी लाल। इतिश्री फिलहाल।

बुधवार, 14 मार्च 2012

फेसबुक, फलाने सिंह और मेरी फीलिंग

ऑफिस में काम की छीछालेदर से मुक्ति पाई तो बैठ गया चंद पलों के लिए फेसबुक पर फंटियाने। हमारे यहां मध्य यूपी में फंटियाने से आशय होता है एक निठल्ले द्वारा निकम्मेपन का किया जाने वाला कार्य। इसलिए कार्यमुक्ति के बाद मैं ऑफीसरी नियम कानून के मुताबिक निठल्ला हो गया था। फेसबुक से ज्यादा पारिवारिक नहीं होने की वजह से मैं बहुत ज्यादा उसका इस्तेमाल नहीं करता। लेकिन ऑफिस में एक बार फेसबुक जरुर खोल लेता हूं, और कोशिश कर रहा हूं, कि इस डिजिटल रईसी से अपनी रिश्तेदारियां बढ़ा लूं।
अभी अपना खाता खोलने ही वाला था कि कम्प्यूटर चीख कर बोला आपके द्वारा भरा गया कूट शब्द गलत है, या फिर उपभोक्ता का नाम त्रुतिपूर्ण ढंग से दर्ज करवाया गया है। ऐसा एक बार नहीं तीन बार हुआ। बार बार यही जवाब थूथ पोथी के ज़रिए दिया जा रहा था। सब कुछ ठीक। लेकिन फिर भी फेसबुक मुझे स्वीकार नहीं कर रही थी। दिमाग भन्ना गया । कि सहसा मेरी नज़र कैप्स लॉक वाले बटन पर पड़ी। जो बेफिक्री के साथ खुला हुआ था। मैने उसको बंद किया और उसके बाद दोबारा लॉगिन किया। एक कोड को रिक्त स्थान में भरने के उपरांत चटाक से खाता खुल गया। फेसबुक के चारों कोनों में झांकने की कोशिश की गई। पाया कि फेसबुक पर न तो कहीं लाल निशान दिखाई दे रहा है, और न ही कहीं हरा निशान दिख रहा है। लेकिन कंप्यूटर स्क्रीन पर उल्टे हाथ की तरफ लगातार आने वाला एक अदृश्य सा संदेश बार बार ये कह रहा था । कि आपके मित्र फलाने सिंह के खाते पर किसी के द्वारा टिप्पणी की गई। किसी ने फलाने सिंह के खाते को पसंद किया। किसी ने फलाने सिंह को पोक किया। किसी ने टैग । किसी ने शेयर । तो किसी ने उनकी दीवार पर लिख दिया आपको जन्मदिन की पूर्वदत्त बधाई। जबकि फलाने सिंह का जन्मदिन दो दिन बाद था। फिर भी फलाने सिंह को किसी ने वक्त की कमी के चलते पहले ही बधाई दे दी थी। डिजिटल दोस्ती में बधाई संदेशों का ये बेहद द्रुतगामी तरीका है।
फलाने के लिए लगातार संदेश आये जा रहे थे। और बार बार उनके प्रालेख पर भेजे गए संदेशों की बत्ती मेरे प्रालेख पर चमक रही थी। फेसबुक पर फलाने सिंह के पांच हज़ार से ज्यादा मित्र हैं। इस लिहाज़ से उन्हें फेसबुक का करोड़पति तो आंका ही जा सकता है। फलाने एक घटिया शेर फेंकते हैं। तो एक झटके में सौ टिप्पणियां आ जाती हैं। जब बेहतरीन शेर फेंकते होंगे तो कितने आते होंगे मैं तो यही सोंचता रहता और जलता रहता। पड़ोसियों का सुख ही पड़ोसियों की जलन का कारण बनता है। खैर छोड़िए। इस बार फलाने सिंह ने एक ऐसा चोरी का शेर दे मारा है कि टिप्पणियों की बरसात हो गई। रुसवाई की पीड़ा से विकलांग हो चुके इस शेर पर लोग दनादन टिप्पणियां दिये जा रहे थे। कुछ लोग ऐसे भी थे जो उस शेर को पसंद भी कर रहे थे। ऐसा नहीं था कि पसंद करने वालों ने उस शेर पर टिप्पणी नहीं दी थी। कुछ ने टिप्पणी भी दी और पसंद भी किया। ये प्रक्रिया बताती थी, डिजिटल दोस्ती में फलाने सिंह ने काफी साख बना रखी है। वो जो लिखते हैं, उस पर टिप्पणियां दी जाती है, जो लिखते हैं, उसे पसंद किया जाता है। कई बार तो ऐसा भी होता कि जब कोई उनकी स्थिति पर पसंद का चिन्ह नहीं लगाता, और टिप्पणी नहीं देता, तो वो खुद अपने आप को पसंद कर लिया करते । संतोषम् परम् सुखम।
लेकिन कुछ भी हो मैं फलाने की फेसबुक प्रणाली से काफी प्रेरित था। और इसीलिए कई बार देखा देखी में ही फेसबुक खोल लिया करता था। फलाने सिंह गूगल खोलते। उस पर गालिब लिखते । गालिब का कोई शेर मिलता, तो उसमें थोड़ा संपादन करते, और फेसबुक पर स्टेटस के डब्बे में ठेल देते । फलाने के लिए इस तरह की चोरी कोई गुनाह नहीं थी। क्योंकि उन्हें पता है, वो जो लिखते हैं, उसे पसंद किया जाता है, जो विचार प्रस्तुत करते हैं, उस पर टिप्पणी दी जाती है। अगर फेसबुक पर पांच हज़ार से ज्यादा मित्रों वाले इंसान को पांच सौ से ज्यादा कमेंट आते हैं तो उसे फेसबुक का करोड़ पति आंका जाएगा। ऐसा मैं नहीं फलाने सिंह सोचते हैं।
शायद भारत में जब से फेसबुक का उदय हुआ था, तभी से फलाने सिंह फेसबुक पर बड़े ही धर्मनिरपेक्ष अंदाज़ में मित्रता के हाथ बढ़ाए हुए थे। इसीलिए उनके डिजिटल दोस्त पांच हज़ार से ज्यादा थे। और मेरे सिर्फ चार सौ कुछ। एक दिन मैने फलाने से उनके संदेशों पर आने वाली टिप्पणियों का राज़ पूछा तो उन्होने बड़े ही सरल अंदाज़ में बताया।
पहले एक काम करो।
नियमित अपना खाता खोलो।
खाते पर कोई निमंत्रण आये उसे स्वीकार करो।
निमंत्रण न भी आये तो तुम लोगों को अपनी तरफ से निमंत्रण भेजो।
रोज़ाना एक घंटे फेसबुक पर बैठने की प्रैक्टिस करो।
जो भी दिखे, उसे अपनी तरफ से निमंत्रण भेज दो।
कोई भी अपने स्थिति विवरण में सुधार करे तो उस पर तुरंत टिप्पणी दो।
कोई भी शोक गीत से लेकर प्रेम गीत तक लिखे उसे तुरंत पसंद करो।
जितना शीघ्र किसी पर टिप्पणी करोगे, या उसे पसंद करोगे, उतनी ही शीघ्रता से तुम्हारे मित्रों की संख्या बढ़ने लगेगी।
किसी का स्थिति विवरण बहुत अच्छा लगे, तो उसे लोगों में बांट दो।
ऐसा करने से लोग तुम्हारे मुरीद हो जाएंगे, और तुम फेसबुक के शहंशाह हो जाओगे।
फलाने सिंह की ये बात मुझे बड़ी ही अच्छी लगी, कि अगर डिजिटल दोस्तों की संख्या बढ़ानी है तो सिर्फ एक घंटे का श्रम करना है, और बस चंद गालिब के शेरों की चोरी कर उनका संपादन करना है।
वाह भई वाह
कमाल का विचार है।
हींग लगे न फिटकरी और रंग चोखा।
अब तो हम भइया ऐसे ही दोस्त बनाएंगे। पांच हज़ार नहीं पूरे दस हजार करके दिखाएंगे। क्योंकि फलाने सिंह की तरह हम फेसबुक पर एक घंटा नहीं पूरे दो घंटे बिताएंगे। फिर बताएंगे कि कैसे इतराया जाता है फेसबुक की टिप्पणियों पर। हुंह। जाओ सनीचर मेरे बंगला से। अब क्यों राखी देर लगाये। बड़े आए फलाने सिंह।