गुरुवार, 4 अप्रैल 2013

बेरहम राजा ( एक लघु कहानी)

राजा की आंखों पर स्वार्थ का चश्मा था। अब प्रजा के दुख उसके अपने नहीं थे। जो कल तक खुश थे। आज अपना दुखड़ा भी राजा से नहीं कहते। वो जानते थे राजा काहिल हो चुका है। यदा कदा कोई राजा के दरबार में शिकायत लेकर पहुंचता। तो राजा आश्वासन की मरहम पट्टी उसके लगा देता। और पुन: अपने रसरंजन में लीन हो जाता। उसके सितम की कहानी नहीं थम रही थी। और एक दिन की बात है जब एक बेहद गरीब फरियादी उसके दरबार पहुंचा। इस आस में कि शायद राजा उसकी माली हालत देख उसके दुख दर्द दूर करेंगे। याचक ने दर्द भरे लहज़े में कहा। याचक-हे राजन मेरी औलाद को बचा लो ! राजा-क्या हुआ तुम्हारी औलाद को ? याचक-वो कई दिनों से भूखा है, पत्नी भूख से पहले ही मर चुकी है, और मेरी हालत आपके सामने है। राजा-तुम क्या करते हो ? याचक-ज़मीन का एक टुकड़ा था, जो अब तक मुझे रोटी देता रहा, लेकिन अकाल ने हमारे परिवार को इस मोड़ पर ला खड़ा किया। मेरी ज़मीन पर फसल नहीं, मरे हुए जानवरों की अस्थियां बाकी हैं। राजा-क्या कहते हो, ये अकाल कब पड़ा ??? (राजा के इस सवाल पर पूरा दरबार हैरत में था। क्योंकि राजा को अपने राज्य की तकलीफों का संज्ञान नहीं था) याचक- हे राजन 3 महीने हो गए, राज्य में बारिश सिर्फ एक या दो बार हुई, कुएं सूख चुके हैं, तालाबों में पानी नहीं रहा, नदियां भी अपने आखिरी दिन गिन रही हैं, लोग नालियों से पानी छानकर गुज़र बसर कर रहे हैं। अगर और कुछ दिन बारिश नहीं हुई तो कई लोग बेमौत मारे जाएंगे। हुकुम कुछ कीजिए मैं अपने बेटे को यूं मरते देख नहीं सकता। राजा को उसकी बात पर यकीन नहीं था, क्योंकि कई दिनों से वो अपने महल परिसर से बाहर ही नहीं निकला था। उसे अपने व्यसनों से ही फुरसत कहां थी । राजा-ठीक है तुम जाओ, और अपनी ज़मीन के कागज़ वज़ीर को दे दो, उनसे अपनी ज़मीन की कीमत ले लो। और अपने बच्चे का पेट भरो। वज़ीर ने पांच सोने की मुहरें उस गरीब को दे दीं, और उसे दरबार से विदा कर दिया गया। अगले दिन याचक राजा के दरबार में अपने बेटे की लाश लेकर पहुंचा। याचक-राजन देखो तुम्हारी पांच सोने की मुहरें मेरी औलाद की जान नहीं बचा सकीं, मैने वो पांच सोने की मुहरें अपने बेटे को इसलिए खिला दीं, क्योंकि मैं इसको तिल तिल कर मरते नहीं देखना चाहता था। हे राजन जब प्रजा में किसी को भूख लगती है, तो उस भूख का दर्द आपको भी होना चाहिए। जब कोई दुखी हो, तो उसके आंसू आपको पोंछने चाहिए। कहीं मातम हो तो उसमें शरीक होना चाहिए। हे राजन आज मैं कहता हूं, कि आप हमारी प्रजा का नेतृत्व करने के लायक नहीं। (इतना सुनते ही राजा गुस्से से तिलमिला उठा) राजा-सिपाहियों इसकी ये ज़ुर्रत की ये हमारे नेतृत्व पर उंगलियां उठाए, कलम कर दो इसका सिर, हमने तो इसके बेटे की जान बचाने के लिए पांच सोने की मुहरें भी दी थीं, और इस बदज़ात ने हम पर ही उंगलियां उठाईं, काट दो इसकी उंगलियां, ले जाओ इसे मुझसे दूर। (राजा स्वार्थी के साथ बेरहम भी था, उसने वैसा ही किया जैसा उसने अपने सिपाहियों को आदेश दिया, पहले दरबार में उसकी उंगलियां काटी गईं, और कुछ दिन बाद उसका सिर कलम कर दिया गया) लेकिन जिस दिन उसका सिर कलम किया गया। प्रजा बागी हो गई। जो अब तक राजा के डर से सिर नहीं उठाते थे, वो सिर उठने लगे। राजा का चहुंओर विरोध शुरु हो गया। विरोध की इस लहर को हर ओर महसूस किया जाता। बात दूसरे राज्यों तक भी पहुंच गई। दूसरे राज्यों ने उस अत्याचारी शासक पर हमला बोलने की ठान ली। और वो दिन आया, जब उसकी सत्ता पर किसी और सुल्तान का कब्ज़ा हो गया। राजा को बंदी बना लिया गया। उस गरीब का श्राप राजा की सत्ता ले डूबा।