शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

नई गाथा...

वक्त की सुनामी ने अंधियारे और गमों के धुएं को समेट कर कहीं बहा दिया। झंझावातों में उलझे जज्बाज, छ सालों से सुलग रहे ज्वाला मुखी में जलकर कहीं भस्म हो गए । तकदीर के फसानों ने अब नई गाथा लिखनी शुरु कर दी है। इसी कहानी में अब एक नया चरित्र घर कर चुका है। उसके साथ उम्मीदों का कल्पतरु इतना विशाल है कि पिछले ज़ख्मों की टीस उसकी जड़ों में दबकर अब कहीं ज़मींदोज़ हो चुकी है। मुस्कान के खलिहान में उजाले की पहली किरण कुछ ऐसे पड़ी है कि मौसम सुनहरा हो उठा। इसी मौसम ने चेहरे की सड़क पर खुशी की नुमाइश लगा दी है। जिस किरण की तलाश में बरसों भटका, वो अब मेरे पास है। शहर की गलियों में उसकी मौजूदगी बड़ी खास है। स्याह रात से हसीन सुबह तक ये गाथा अब नया इतिहास लिखने वाली है। एवरेस्ट की पिघलती बर्फ पर शीतल अहसासों ने एक घरौंदा सा बना लिया है। उस घरौंदे में उम्मीदों के पंछियों ने अपना बसेरा कर लिया है। अब वो उस मौसम के इंतज़ार में रहते हैं कि कब बसंती मौसम उनके लिए बहारों की सौगात लेकर आता है। ये उन गुनगुने अहसासों की बारिश की बदौलत है जो पिछले छ सालों में एक टीस का पर्व बन गए थे। हर साल रह रह कर सताया करते थे। जब कभी पछुआ हवाएं चला करतीं तो घाव और हरे हो जाया करते । उनमें एक चीख उभर आया करती । जिसकी ह्दय विदारक ध्वनि आज भी जब महसूस करता हूं। तो कंपकंपी सी आ जाती है। लेकिन हर बार की तरह अब ऐसा नहीं होगा। बिखरी ख्वाहिशों का अब एक गट्ठर मैने बना लिया है। जो पहले से कहीं मजबूत है। हो सकता है कि ये मेरा वहम लो। लेकिन दिल की घबराहट अब जाती रही है। किसी की डर नहीं। बेखौफ हूं। व्यथित मन की अंगड़ाईयां हसरतों की गोधुली बेला के आने से कहीं गुम हो गई हैं। अब थकान नहीं। निरंतर चलने की ख्वाहिश है। अधूरेपन की बेचारगी को भूल एक नया दरख्त मन में अपनी जड़ें जमा चुका है।