रविवार, 27 दिसंबर 2009

ठोकर लाएगी रंगत

मुझे उम्मीद है।
एक रोज़,
ठोकर लाएगी रंगत।
उसका रंग उस दिन,
उस खूं सा लाल नहीं होगा।
जो खूं जमा हुआ है,
कुछ ठोकरों की बदौलत।
गिरेबां में झांककर देखूंगा उस दिन,
कि ठोकर क्यों लगी थी।
लेकिन अब तक,
हर ठोकर जवाब सवाल पूछती है मुझसे?
कि क्यों मुझे हर बार,
इसी पैर में लगना था।
मैं उस सवाल की उलझन में इतना उलझा जाता हूं।
कि अक्सर खुद सवाल करता हूं?
कि क्यों मेरा पैर पत्थर से टकराता है?
मैं कोई राम तो नहीं!
जो अहिल्या मेरी ठोकर से आएगी।
लेकिन उम्मीद है मुझे।
हर ठोकर रंग लाएगी।

शनिवार, 5 दिसंबर 2009

गुटखा नॉट अलाउड

हाल ही की बात है हमारे खबरनबीसों के दफ्तर में गुटखा, पान, सुपारी खाने पर पाबंदी लगा दी गई है। यानि कार्यालय परिसर में जो गुटखा खाता दिखाई दिया उस पर औकातानुसार कार्यवाही की जाएगी। दफ्तर में अंदर से लेकर बाहर तक इस हिदायती फरमान की चिट्ठियों को चिपकाया गया है। लेकिन इतिहास गवाही देता है कि जब-जब क्रांतिकारियों के खिलाफ तुगलगी फरमान जारी किए गए । वो और आगबबूला हो गए। एक बार फिर वैसा ही हुआ और किसी ने दफ्तरी प्रशासन को ललकार लगाते हुए उस नोटिस पर ही गुटखे की पीक से फाइन आर्ट बना दी ।
ये बताना जरुरी है कि ये फरमान आखिर क्यों दफ्तर में जारी किया गया। दरअसल हमारे ऑफिस में गुटखोरों की खासी तादात है । ज्यादातर के मुंह में गुटखा दबा ही रहता है। अगर इस दौरान कोई उनसे बात करता है तो ये उनके दिन का सबसे बुरा वक्त होता है। क्योंकि बात करने के लिए या तो उन्हें गुटखा थूकना पड़ता है। या फिर लीलना पड़ता है। और अगर थूकना पड़ता तो जाते कहां? या तो दफ्तर के शौचालय में या किसी कोने को शिकार बनाना पड़ता । शौचालय तो बेचारा वैसे ही लोगों की शूशू का शिकार बनता है अब उस पर पीक मार- मार कर लोगों ने और दुर्दशा कर दी थी। रही बात कोने-छातर की तो उस पर लोगों की कुछ ज्यादा ही कृपा रहती थी। खास कर वहां पर जहां सीढ़ी से चढ़ते हुए न्यूज़ रुम में दाखिल हुआ जाता है। उस कोने पर तो जैसे लोगों को प्राइमरी अधिकार मिला हुआ था कि न्यूज़ रुम में घुसने से पहले यहां पर एक बार पिच्च-पिच्च जरुर करें। पीक के कीर्तिमान स्थापित करता दीवार का वो कोना गुटखोरों का शिकार बन चुका था। पीक की दिन-ब-दिन बढ़ती परतें तमाम पेंट कंपनियों को मुंह चिढ़ाती सी नज़र आती थी। क्योंकि अब वहां से पेंट नदारद था। और रंगीन मिजाज गुटखा दीवार के उस हिस्से को अपने आगोश में ले चुका था। गुटखे की आड़ में छिपती दीवार अब दफ्तरी प्रशासन के लिए भी चुनौती बन चुकी थी। लिहाज़ा गुटखा नॉट अलाउट इन ऑफिस प्रीमिसेस नाम का बोर्ड जरुरी हो चला था।
ऑफिस का ये फरमान तमाम गुटखोरों के लिए एक बड़ी परेशानी का सबब था। क्योंकि कई लोगों को दिल और दिमाग की बत्ती इसी के बल पर जलती है। अब भला जब दिल और दिमाग में ही अंधेरा होगा तो काम क्या होगा खाक ! चूंकि मैं गुटखा नहीं खाता इसलिए इसका आनंद भी नहीं बखान कर सकता । इसलिए इस विषय पर शोध हेतु मैने कुछ लोगों की जाने-अनजाने बाइट ली। तो लोगों का कुछ यूं कहना था।
सबसे पहले पीसीआर में ऑनलाइन ग्राफिक्स डिपार्टमेंट ले चलते हैं। जहां मौजूद एक किशोर से मैने बात की तो उनका कहना था। कि जब तक ससुरा ई (गुटखा) मूं में न भरा हो सब ऑनलाइन ऑफलाइन नज़र आता है। दिल ही नहीं लगता है भाई। दिन पूरा गुम सुम सा बीतता है। हमारा तो सुसरा जीना ही हराम हो गया। एकाग्रता ही नहीं बनती है क्या करें ? पीसीआर के किशोर से बात करने के बाद रुख करते हैं न्यूज़ रुम का, जहां गुटखोरों का असली जमावड़ा लगता है। ट्रेनी से लेकर अधिकारी वर्ग सभी गुटखे के बेहद शौकीन हैं। लोगों की कॉपी पर कैंची चलाने वाले एक एडिटर महोदय का इस मामले में दर्शन ही अलग नज़र आया। हनुमान सरीखा मुंह लिए बैठे एडिटर महोदय अपनी बाइट देने से पहले दो तीन बार सोचते नज़र आए कि बोला जाए या नहीं । हालांकि बाइट ऑफ द कैमरा थी इसलिए कोई दिक्कत भी नहीं थी। लेकिन गुटखा जो मुंह में था। और थूकने कहीं जा नहीं सकते। खैर सारी खुशी लीलते हुए बोले भई ये जो गुटखा है न कमाल का आइटम है। दो रुपए में जन्नत की सैर से कम नहीं। जब गुटखा हो मुंह में तो कमाल का हाथ चलता है कीबोर्ड पर। गुटखा खाने में चौदह साल का अनुभव रखे एक जनाब(जो सीएनबीसी आवाज़ से जुड़े हैं) भी इसके बगैर सबकुछ अधूरा सा महसूस करते हैं। महोदय अर्थजगत से जुड़ी खबरें देखते हैं। और गुटखे की करामात से सेंसेक्स को उठाते गिराते है। हालांकि बाज़ार दो दिन बंद रहता है। लेकिन इनका मुंह गुटखा खाने के लिए सातों दिन खुला रहता है।
अब मिलवाते हैं आजाद न्यूज़ के अनोखे राम ड्रैगन शर्मा से । अपने जीवन का ज्यादातर समय इन्होंने गुटखा खाने और पीकने में व्यतीत किया है । इसलिए इनका अनुभव मेरे लिए मायने रखता है। वैसे तो ये बेहद गुस्सैल प्रवर्ति के हैं जैसा कि नाम से पता लग रहा होगा। लेकिन जब ये गुटखा खाते हैं तो काफी घंटों तक न्यूज़ रुम में शांति होती है। इस दौरान इन्हें किसी का खलल पसंद नहीं। इन्होंने भी ऊपर वालों की ही तरह गुटखे की अद्भुत महिमा का विशद वर्णन किया। लेकिन इन्होंने एक ऐसे व्यक्ति के बारे में भी बताया, जो गुटखा खाने के मामले में लौहपुरुष है। ड्रैगन के मुताबिक अमुक शख्स ने कभी गुटखा थूका ही नहीं। हाजमा इतना दुरुस्त की कि बगैर हाजमोला ईंट तक चबा जाएं। शर्मा जी ने मुझे नाम तो बताया लेकिन ये भी हिदायत दी कि इनके नाम का इश्तेहार न किया जाए। यही कारण रहा कि मैने इन महान विभूति के नाम का ज़िक्र नहीं किया।
खैर विदाउट गुटखा लोग हलकान हैं। लेकिन मैं पहले ही कह चुका हूं गुटखे की क्रांति लाने वालों को कब तक रोकोगे। मौका लगते ही वो आंदोलन कर देंगे। बंदिश-ए- थूथ कब तक चलेगी। और वैसे भी लोगों ने सुस्त प्रशासन की तरह पुराने ढर्रे पर चलना शुरु कर दिया है। अब दफ्तरी प्रशासन के लिए एक और चुनौती है। छुपे हुए आंदोलन कारियों से निपटने की ।