रविवार, 13 जून 2010

चिलम चूतिया

एक रात की बात है,
बिना विचारे,
मेरे द्वारे,
दो चूतिया पधारे।
मकसद-ए-खाक था,
इरादा नापाक था।
बनाना था मुझे चूतिया,
मौका था अप्रैल फूल का।
भीषण गर्मी थी,
उन्हें ठहराने को,
घर में जगह कम थी।
चू रहा था,
उनकी टांट से पसीना,
उस रात दोनों ने,
कर दिया हराम मेरा जीना।
अपनी संकुचित जुबान से,
बड़े बड़े प्रोजेक्ट मुझे सुझाने लगे।
कम लागत में,
बड़े बनने का ख्वाब,
मुझे दिखाने लगे।
उनकी बातों में उस रात बड़ा दम था,
जो मुझे हर बात सुहाने लगी।
लगा,
कि अब बड़ा बन जाऊंगा
टेम्स के दर्शन कर पाऊंगा ।
लेकिन उनकी सुलगती,
चिलम-ए-चूतिया का धुंआ,
मैं महसूस न कर पाया,
उनके इरादों को भांप न पाया ।
अपने आप को वो समझ रहे थे,
भारत की महान विभूतियां,
और बना रहे थे मुझे चूतिया।
था मलाल इस बात का ,
कि वो दो थे ,
और मैं था अकेला,
समझ नहीं पा रहा था,
उनका झमेला ।
उनकी हर बात में रबडी़ का लच्छा था,
उनका हर विचार उस समय बड़ा अच्छा था।
वो ब्रेन वॉश में माहिर थे,
चाट गए किसी दीमक की भांति,
मेरे दिमाग को,
और समझ रहे थे बुद्धिजीवी,
अपने आप को ।

4 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

वाह मजा आ गया....बड़ी ही रोचक कृति है

Shekhar Kumawat ने कहा…

शानदार पोस्ट है...

Randhir Singh Suman ने कहा…

nice

yun hi ek khayal mein ने कहा…

कुछ तो बात है तुममें जो इतना ख़ूब सोच जाते हो जो बनाने आए तुम्हें चूतिया उसे ही अपनी बातों से पागल बनाते हो...बहुत ख़ूब हो तुम ..जो इतना बढ़िया सोच पाते हो...
बहुत बढ़िया लगा ये चिलम चुतिया मेरे भाई सच में मुझे मिले कई चूतियाओं की याद आई........