शुक्रवार, 18 मार्च 2011

रंगों का संदेश..

निर्जीव किंतु, जीवट हूं मैं
रंगता हूं अंतरमन तक को
नहीं जानता जाति-धर्म मैं
बस लग जाता हूं सबको
गोरे-कालों की भेद मिटाकर
मैं भावों पर छा जाता
कभी किसी की कविता बनता
कभी गीत बन जाता
मैं राष्ट्र एकता का भागी हूं
और अहसासों का साथी
एक रहें सब दुनिया में
ये मेरे जीवन की थाती
क्रोध मिटा लो, द्वैष मिटा लो
भूल जाओ हर एक व्यथा
लगा रहूं मैं सबके तन पर
अंतिम लब्ज़ों में ये एक कथा
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रंगों का त्यौहार, प्यार की फुहार, अल्हड़ मस्ती का सार, अहसासों की सिमटी दुनिया में प्रस्तुती का त्यौहार, होली आज मुबारक, कल मुबारक, हमेशा मुबारक....