शनिवार, 17 जनवरी 2009
अलग-थलग पड़े पड़ोसी
26 नवंबर 2008 को मुंबई में हुए आतंकी हमलों ने समूचे विश्व को एक बार फिर झकझोर दिया.....इस भीषण हमले में जिस देश का नाम आया वो कोई चौंकाने वाला नहीं था....यानि भारत का पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान....देश की शान पर हुए इस सबसे बड़े हमले के बाद उन चर्चाओं ने एक बार फिर ज़ोर पकड़ा जो पाकिस्तान पर इस बात को लेकर दबाव बनाती कि बस अब पानी सर से ऊपर जा चुका है......आतंक की जिस फसल को पाकिस्तान में बोया जा रहा है.......वो अब जड़ सहित उखाड़ फेंकी जानी चाहिए......लेकिन मामले को लेकर हमेशा की तरह पाकिस्तान का अड़ियल रवैया बरकरार है...पाक सरकार कहती है कि ये मुल्क ऐसा नहीं है जहां आतंक को या तो पनाह दी जाती है....या उसका लालन पालन होता है.......लेकिन मायानगरी पर हुए हमलों में जो सबूत मिले हैं वो इशारा तो पाकिस्तान की ओर ही करते हैं......खासकर इस हमले में पकड़े गए एकमात्र आतंकी कसाब को लेकर जो बात पाक सरकार ने कही है.....वो और भी चौंकाने वाली है.....कि कसाब उनकी सरजमीं का नहीं है.......इस मामले को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच तल्खी इस कदर उभरी कि सीमा पर तलवारें निकलने तक की नौबत एक बार फिर आ गई.......मजबूरन भारत के पास भी एक ही चारा बचा और वो था पाकिस्तान को मोहताज बना देना......उस पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बनाना.....ये दबाव भी तभी कारगर होता जब विश्व पटल पर नामचीन देश पाकिस्तान को उसकी हरकत के लिए चेताते......और हुआ भी ऐसा.......अब वो अमेरिका पाकिस्तान से परे है जिसने कभी अफगानिस्तान पर किए हमले में पाकिस्तानी ऐयरबेस इस्तेमाल किया था.......साथ ही कई और देश भी ऐसे हैं......जो पाकिस्तान पर इस बात को लेकर दबाव बना रहे हैं कि वो भारत की हर संभव मदद करे ताकि आतंक पर लगाम लगाई जा सके।
कसक-2008
देख रहा था दूर सूर्य को
सिर्फ अंधेरा पाया
नवजीवन की इस बेला में
घोर कष्ट था छाया
मानव दानव बन बैठा है
मन में छिपा कपट बैठा है
इंतजा़र में बूढ़ी मां ने
त्याग दिया इन आंखों को
मन को मारा उस बेवा ने
छीना जिसका पति उन्होंने
ये इंतज़ार की सिसकन है
ये सिसकन है उस धरती की
जिस धरती पर खून बहा
ये खून उन इंसानों का
जो बेबस थे लाचार थे
उन्हें तो ये तक न पता
कि मौत का तमाशा कब
उनके घर के बाहर होने लगे
आंखों में कसक
और ह्रदय में सिसकन
उन लोगों के लिए है
जिनके इंतजार में ये आंखें
थक कर बूढ़ी हो जाएंगी
लेकिन वो टूट चुकी सांसें
अब दोबारा वापस न आयेंगीं...अनुपम मिश्रा
सिर्फ अंधेरा पाया
नवजीवन की इस बेला में
घोर कष्ट था छाया
मानव दानव बन बैठा है
मन में छिपा कपट बैठा है
इंतजा़र में बूढ़ी मां ने
त्याग दिया इन आंखों को
मन को मारा उस बेवा ने
छीना जिसका पति उन्होंने
ये इंतज़ार की सिसकन है
ये सिसकन है उस धरती की
जिस धरती पर खून बहा
ये खून उन इंसानों का
जो बेबस थे लाचार थे
उन्हें तो ये तक न पता
कि मौत का तमाशा कब
उनके घर के बाहर होने लगे
आंखों में कसक
और ह्रदय में सिसकन
उन लोगों के लिए है
जिनके इंतजार में ये आंखें
थक कर बूढ़ी हो जाएंगी
लेकिन वो टूट चुकी सांसें
अब दोबारा वापस न आयेंगीं...अनुपम मिश्रा
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