शनिवार, 14 नवंबर 2009

बुढ़ापे की संवेदना

बूढ़ा होता है हर कोई
ढलती हुई उम्र के साथ
ऐसा बूढ़ा न हो कोई
उस बूढ़े, बुढ़िया के जैसा
न खाना है
न दाना है
साथ नहीं है अपनों का
एक सहारा बस बाकी है
लाठी और अकेलेपन का
सावन भी अब बूढ़ा सा है
पतझड़ से सारे मौसम हैं
एक अकेली कोंपल को
बस तरसे विचलित सा उनका मन है
बचपन को पाल बुढ़ापे में
सब छोड़ चले अब उनको
उम्मीदों की बुझती लौ
तरस रहे तिनके-तिनके को
तन की सिलवट
सिमट रही है
कलयुग के उजियारे में
जीवन अपना काट रहे बस
थोड़े से अंधियारे में

सोमवार, 9 नवंबर 2009

कचरा-कचरा “यम की बहना”

ज़रा विचारिए कि जब हमारे सामने यमराज की खौफजदा कल्पना होती है। तो चित्र में भैंसे पर सवार एक बेहद ही बेडौल और खाए-पिए खानदान से ताल्लुक रखने वाले मनुष्य की छवि अकस्मात ही सामने आ जाती है। हाथ में कांटेदार गदा और अपने मन में मौत सरीखा भय लिए यमराज की ये तस्वीर बेहद भयावह है। लेकिन इस बार जब नोएडा से कालिंदी कुंज होते हुए जब मैं दिल्ली जा रहा था। तो मेरी मुलाकात यमराज की बहना से हो गई। फेस-टू-फेस तो नहीं, लेकिन कल्पनाओं के घोड़े दौड़े तो एक छवि उनकी भी मैने उकेर ही ली। इन बहना रानी का स्कूल का नाम उनके पिताजी ने यमुना रखा था । बड़े ही लाड़ और प्यार से पाला गया था यमुना जी को। पश्चिमी हिमालय पर एक फ्लैट भी यमुना जी को दिया गया। जहां से निकल कर निश्चित मार्गों से होकर वे कहीं भी सैरसपाटा कर सकती है। अब यमुना जी की तो चांदी ही चांदी थी। और हां एक बात और समझाई गई थी यमुना जी को, कि आपकी दो सहेलियां गंगा और सरस्वती आपको इलाहाबाद में मिलेंगी। जिनसे मिलकर आपका नाम भारत में बड़ी श्रद्धा से लिया जाएगा। अपने पिता की असीम अनुकंपा से यमुना रानी निकल पड़ीं सैर सपाटे को । शायद ऐसा ही सफरनाम रहा होगा अपनी यम की बहना का।
पुराणों की मानें तो यमुना जी को बेहद पवित्र और कई संस्कृतियों से सराबोर माना गया। लेकिन यहां तो मैने यमुना का उस दिन दूसरा ही चेहरा देखा। अब तक तो लोगों के मुंह से ही सुना था। कि अपने अंदर जीवन दायिनी जल समेटे यमुना अब मैली हो चुकी है। और उस दिन देख भी लिया। कालिंदी कुंज के करीब से बहने वाली यमुना फैक्ट्रियों से निकले रसायन की बदौलत साबुन सरीखी झाग से नहा रही थी। वो झाग इतनी सफेद थी कि मुझे अलास्का की बर्फ याद आ गई । सोचा कि वाह यमुना जी के तो वारे-न्यारे हो गए। बड़ा ही सुंदर स्नान कर रही हैं मैडम। और कमाल की बात तो ये यमुना को भी नहाने की जरुरत पड़ गई। दरअसल वो अलास्का की बर्फ मेरा भ्रम थी। मेरे साथ में ही मौजूद जब मेरे एक मित्र कलीम खान जी ने मुझे प्रदूषण की परिभाषा समझाई तो समझ आया, कि ये डव की झाग नहीं, बल्कि फैक्ट्रियो से निकला वो रसायन है, जो यमुना के जल को जहरीला बना रहा। खैर अब भ्रम का टाटी उड़ चुकी थी। और हकीकत सामने थी। यमुना जी का जल जलजला बन चुका था। ऐसा लग रहा था मानों हजारों मछलियों की मौत का टेण्डर यमुना जी ने ले लिया हो। यमुना जी का पुश्तैनी धंधा एक बार फिर फलीभूत होता जान पड़ रहा था। खैर कसैली गंध लिए यम की बहना का रंग भी उस झाग के नीचे अब काला पड़ चुका था। जिस सूर्य पुत्री यमुना की कल्पना मैं सुंदर कर बैठा था। वो निहायत ही बदसूरत हो चुकी है। अगर मैं कुछ कर सकता तो शायद फेयर-एंड-लवली मुहैया करा सकता था। जिससे वो सात दिनों में ही निखर जातीं। लेकिन फेयर-एंड-लवली से काम न होने वाला था। क्योंकि हजारों कुंटल के मेरे पास तो पैसे भी नहीं थे। बेचारी कचरा-कचरा “यम की बहना” का वो बेनूर चेहरा वाकई आघात पहुंचा रहा था।
जिसके शरीर पर गहनों की कल्पना मैने की थी। उसका शरीर फैक्ट्रियों और मिलों की गंदगी, अधजली लाशों, मरे हुए जानवरों, की गंदगी से सराबोर था। वाकई यम की बहना दुर्दशा के दौर से गुजर रही है। मेरे बस में उसका कोई उपचार नहीं था। शायद सरकार के पास हो। अगर है तो जल्द कुछ करे। वरना ये यम की बहना जीते जी कालकल्वित हो जाएगी।

मंगलवार, 3 नवंबर 2009

घासीराम का आतंक

(बीबीसी हिंदी डॉट काम की खबर से प्रेरित होकर लिखा गया है, जिसमें ये कहा गया था कि हाल ही में एक भारतीय टिड्डा ब्रिटेन जा पहुंचा है।)
यूं तो हमारे एक मित्रवर हैं जिनका राशि का नाम घासीराम है। लेकिन न तो वो आतंकी हैं। और न ही घासखोर। उनके अंदर कोई भी ऐसी आदत नहीं कि वो दिन में भोजन करते हों, और रात को समाज की नज़रों से बचकर घास ही चरते हों। लेकिन फिर भी वो घासीराम है। हालांकि उनका शुभनाम कुछ और ही है। खैर यहां हम उनकी किसी कला का वर्णन नहीं कर रहे हम तो आज आपको एक नए घासीराम से मिलवाना चाहते हैं। जो घासखोर भी हैं। और एक प्रशिक्षित आतंकी भी। विलायती लोगों की भाषा में उन्हे ग्रासहोपर कहा जाता है तो हिंदी में उसे घासखोर की संज्ञा दी जा सकती है। कमाल के ढांचाबदर ये घासखोर अपने रंगीन बदन के लिए भी जाने जाते हैं। सतरंगी छटाओं से लैस इनके बदन हर एक पार्ट खुदा की नियामत से बड़े ही अजीबो-गरीब ढंग से सजाया गया है। इनको देखकर ऐसा लगता है कि बड़ा ही गुमान होगा इन्हें अपनी इस विस्मय काया पर। और जब ये घासखोर महाराज उड़ान पर निकलते हैं तो ऐसा लगता है कि कोई अमेरिकी ड्रोन विमान शिकार पर निकला हो। लेकिन इनके लिए एक बात मैने बहुत पहले पढ़ी थी The Ant and the Grasshopper नामक अध्याय में। पाठ इनके चरित्र को बखूबी बयां करता था। कि एडम और ईव के समय की पैदाइश ये घासखोर निहायत ही हरामखोर प्रवर्ति के हैं। पाठ में हमें बताया गया था कि ये घासखोर टिड्डे के नाम से जाना जाता है। लेकिन यहां इनका एक और चरित्र भी आज मैंने खोजा है। वो है बगैर वीसा और पासपोर्ट के विदेश यात्रा करने का। यानि ये घासखोर कबूतरबाजी में भी माहिर हैं। फर्जीवाड़ा करके ये विदेशों की सैर भी कर लेते हैं। हाल ही में ये भारत से चलकर ब्रिटेन के दौरे पर हैं। राजनेताओं की तरह इनके इस गुपचुप दौरे को लेकर ब्रिटेन का खाद्य एवं पर्यावरण संस्थान यानी फ़ेरा हलकान है। सबसे पहले इसी संस्था को पता चला कि इनके देश में कोई घासीराम नाम का घुसपैठिया घुस आया है। न तो उसके पास वीसा है और न ही पासपोर्ट। ब्रिटेन की भी चिंता वाजिव है, क्योंकि घासीराम घास खाने में पारंगत हैं। इन्हें हरियाली कतई बर्दाश्त नहीं। इस मामले में इनके पेटूपन का भी कोई सानी नहीं । जहां इन्हें अपने मन का खाना दिखता है। वहीं इनका आतंक शुरु हो जाता है। और पल भर में ये हजारों एकड़ फसल अपने मासूम से उदर में पचा लेते हैं। नियति का खेल तो देखिए हमारी नुमाइंदगी करने वाले कुछ लोग इन्हीं से प्रेरित जान पड़ते हैं। और कई एकड़ घास घोटाला उनके खाते में चढ़ चुका है। टिड्डा एक कीट है लेकिन वो एक इंसान हैं। लेकिन मैने कई बार सुना है कि इंसान के जीवन में कोई भी उसका आदर्श बन सकता है। पर पहली बार ये सुना है कि कोई इंसान किसी कीट को अपना आदर्श मानता हो। खैर टिड्डे की इसी महामाया ने इसको तालिबानी लड़ाकों जैसा बना दिया है। कई बार ये आत्मघाती का काम करते हैं। क्योंकि इनकी ज्यादातर मौत स्वाभाविक नहीं बल्कि अपनी उदर छुदा मिटाने की खातिर होती है। मतलब साफ है ये जान हथेली पर लेकर शिकार को निकलते हैं। भारत से लेकर पाकिस्तान तक घासीराम का आतंक कई बार देखा गया। कई बार तो ऐसा भी हुआ कि कुछ छोटे देशों की फसल चट कर इन्होंने वहां की अर्थव्यवस्था का सूरत ए हाल ही बिगाड़ दिया। बचपन से ही उड़ान में दक्ष इनकी सेना का हर सिपाही एक कुशल पायलट और कुशल आतंकी है। क्योंकि इनको मारने के सारे प्रयास धरे के धरे रह चुके हैं। और इस बार ये घासखोर ब्रिटेन पहुंच चुका है। इस पर फ़ेरा के कीटविज्ञानी क्रिस मैलंफ़ी ने कहा, “ये सैलानी टिड्डा इतना पेटू है कि जब इसे अलग ले जाकर प्रयोगशाला में रखा गया तो इसने बंदगोभी पर ऐसा हमला बोला कि उसे खाते हुए बंदगोभी के अंदर पहुंच गया.” देखा आपने कितना भयावह दृश्य रहा होगा। घासी राम हैं या ड्रिलमशीन। ऐसा लगता है ये कहीं भी सेंध लगा सकते है। हालांकि ब्रिटेन की फेरा संस्था इस बात से ज्यादा चिंतित नहीं है कि कोई घुसपैठिया उनके दर पर आ चुका है। क्योंकि ब्रिटेन ऐसा मानता है कि मौसम उसके माकूल नहीं है लिहाज़ा वो यहां पर अपनी पलाटून पैदा नहीं कर पाएगा । इसलिए घबराने की जरुरत नहीं। लेकिन आतंकी तो आतंकी होता है। और फिर जब वो एशियाई देश से आया हो । तो मुसीबत का सबब होता ही है। लिहाज़ा घासीराम के आतंक से सावधान। क्योंकि पिछले कई बर्षों से इन्होंने हमारा जीना हराम कर रखा है।