गुरुवार, 23 अक्तूबर 2008

अपने तो,अपने होते है...

वक्त की नज़ाकत कहती है कि बदल जाओ.........अब वो समय नहीं रहा .....अब वो अपने, जो कभी लंगोटी में साथ साथ खेला करते थे बडे़ हो गए हैं, पतलून पहनने लगे हैं......तो मैने भी काफी दिमाग लगाया कि कहीं वक्त मुझे बरगला तो नहीं रहा , कही इसके मन में मेरे खिलाफ कोई चोर चो नहीं। जो मुझे पुचकार कर कह रहा है कि बदल जाओ। मैं भी ऐसे नहीं मानने वाला, इतनी जल्दी नहीं बदलने वाला था। अब वक्त मुझे औऱ समझाने लगा कि देखा पिछले दिनों तुम्हारे कितने करीबियों से तुम्हारी बात हुई। मैने कहा किसी से नहीं। वक्त बोला, देखा मैं न कहता था कि वो बडे़ हो गए हैं , बदल गए हैं। अब उन्हें तुम्हारी जरूरत नहीं । हां कभी तुम्हारे साथ वो जरूर खेले कूदे होंगे। लेकिन आज.....वो बदल चुके हैं। वो कार में घूमते हैं और तुम। मेरा दिमाग फिर सटक गया मैने सोंचा आखिर माजरा क्या है। क्यों वक्त मुझे ये सब बता रहा है। भई अगर मेरे किसी दोस्त से मेरी बात काफी दिनों से न हो तो इसका मतलब ये तो न लगाया जाए कि वो मुझे भूल चुका है। या मै उसे भूल चुका हूं। लेकिन वक्त था जो मानने को तैयार ही नहीं था । उसकी रट .ही थी कि बेटा बदल जाओ। जैसे वो हो गए वैसा हो जाओ।लेकिन इस बार वक्त का पाला किसी आम इंसान से नहीं पडा़ था जो इंसान उसके सामने था उसे तो आप जानते ही हैं। महाजिद्दी किस्म का रहा है। भला वो कहां इस वक्त के बहकावे में आने वाला था। क्योंकि गिरगिट ही समय समय पर रंग बदलता है और मैं कोई गिरगिट तो नहीं। या उसके जैसा कोई दूसरा जीव तो नहीं। और फिर जो सबसे बडी़ बात है वो है ये कि अपने तो अपने होते हैं। कितना भी कोई कुछ कहे उनकी जब याद आती है तब महसूस होता है कि दुनिया उनसे अच्छा कोई नहीं......और फिर वक्त के साथ बदलना हमारी फितरत भी नहीं।