शनिवार, 4 जुलाई 2009

वाह रे “वरुण पुराण”

गरुड़ पुराण के बारे में तो सबने सुन रखा होगा। ये 19 हजार श्लोकों का एक ऐसा पुलिंदा, जिसकी जरुरत तब पड़ती है। जब किसी की मृत्यु हो जाती है। तथाकथित जिस व्यक्ति की मृत्यु होती होती है, उसकी आत्मा को शांति प्रदान करने के लिए इस पुथन्ने का पाठ किया जाता है। घर के सभी सदस्यों के बीच कदाचित् राधे महाराज जैसे ही कुछ ज्ञाता इसका पाठ पढ़ते हैं।
ये तो रही बात गरुड़ पुराण की, लेकिन हाल ही में लॉंच हुआ वरुण पुराण बीजेपी का एक ऐसा एडीशन है, जिसकी प्रति आम चुनावों से पहले बेतरतीब बिकी। खूब ढोल बजा पुराण-ए-वरुण का। युवा पीढी़ को लीड करने वाले जवां गांधी की कारगुजारी खूब पसंद की जा रही थी। और पार्टी के आला अफसर भी उस जश्न में शामिल थे। सबको विश्वास था कि चुनाव बाद वरुण पुराण पार्टी की आत्मा को शांति देगा। यानि पार्टी, सबको चित कर विजय श्री हासिल करेगी। लेकिन क्या हुआ इसका ज़िक्र कुछ देर बाद किया जाए तो बेहतर होगा। उससे पहले ये जान लेना जरूरी है कि आखिर ये गरुड़ ....मेरा मतलब है वरुण पुराण है क्या ?
सात मार्च 2009 की ही बात है। जब पीलीभीत में आम जनता को संबोधित करते हुए वरुण गांधी के मुंह से ऐसे श्लोक निकले जो वरुण पुराण के लिए पहला पन्ना बने, इसके के बाद आठ मार्च को भी ऐसा ही हुआ। यहां भी पीलीभीत के बरखेड़ा गांव में वरुण आग उगलते नज़र आए। और ये आग थी वरुण पुराण का बाकी हिस्सा पूरा करने के लिए।
सबसे पहले पढ़वाते हैं पुराण के कुछ अंश। अगर कोई हिंदुओं की ओर हाथ बढ़ाता है, या फिर ये सोचता हो कि हिंदू नेतृत्वविहीन हैं, तो मैं गीता की कसम खाकर कहता हूँ, कि मैं उस हाथ को काट डालूंगा."। इन संवादों की आत्मा फिल्मों से प्रेरित है। ऐसा जान पड़ता है। क्योंकि अगर किसी सिनेमा में ये संवाद बोले जाते, तो ताबड़तोड़ तालियां पीटी जातीं। और गदर एक प्रेम कथा याद आ जाती।
अब कुछ अगले पन्नों के अंश। अपना लिखित वक्तव्य पढ़ते हुए उन्होंने कहा, "मैं एक गांधी हूँ और एक भारतीय हूँ और समान रुप से एक हिंदू हूँ." "मुझे अपने हिंदू होने पर गर्व है."राजनीतिक षड्यंत्र का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा, "यह मुझे सांप्रदायिक साबित करने की दुर्भावनापूर्ण कोशिश है." उन्होंने कहा, "मैं किसी संप्रदाय के ख़िलाफ़ नहीं हूँ.", "मैंने जो कुछ कहा उसका उद्देश्य किसी को भड़काना नहीं था. मेरे किसी भी संप्रदाय के ख़िलाफ़ होने का सवाल ही नहीं है. मेरी कोशिश एक ऐसे समुदाय के भीतर आत्मविश्वास पैदा करने की थी जो यह महसूस करती है कि वह अपने ही देश में बंधक है."
ये थे वरुण पुराण में लिखे गए लीपा-पोती के कुछ अंश । जो सबको बखूबी याद है। है कमाल की बात तो ये है की जिस गरुड़ पुराण की जरुरत हम सबको हमारी मौत के बाद पड़नी है उसका एक भी श्लोक हमें याद नहीं। लेकिन वरुण पुराण का हर एक श्लोक आत्मा तक में बस गया है। और वरुण पुराण की टीआरपी के तो क्या कहने । सारे चैनल पांच में से पांच सितारे ही दे रहे थे । इस फायरब्रांड युवा को । यानि एक दम मसाला पुराण बन गया था वरुण पुराण।
कुछ ऐसे भी थे जो बीजेपी के इस एडीशन के विरोध में थे । जाहिर सी बात है पहला नाम या तो बहिन जी का होता या कांग्रेस का । सो बहिन जी ने इस पुराण को सेंसर्ड कर दिया । पुराण को ए ग्रेड का सर्टिफिकेट गिफ्ट किया गया। यानि रासुका लगवा दी । पुराण को बक्से में बंद करवा दिया। मतलब वरुण को मखमल के बिस्तर से एटा जेल के दर्शन करवा दिए। जो अब तक शाही पनीर और कड़ाही पनीर खाते थे अब लौकी तोरई खाने को मजबूर थे। भई अब जेल के मोहनभोग तो ऐसे ही होते हैं। और ऐसे ही बहिन जी ने अपनी सारी खुन्नस निकाल ली। तो वहीं लालटेन के लाल बोले कि मैं इस पुराण रचयिता पर बुल्डोजर ही चलवा देता।
पुराण के विरोध जारी थे । लेकिन वरुण की टीआरपी नंबर बना रही थी। और बीजेपी को इसी पुराण की रचना के साथ ही मिला था। एक ऐसा नेता जो मोदी पुराण माना जा सकता था । जिसे संज्ञा भी दे डाली गई जूनियर मोदी पुराण की। बीजेपी के लिए तो ये भागते भूत की लंगोटी से कम न थी। आस थी की शायद यही लंगोटी यमुना पार लगा दे। सबको भरोसा था उस भड़काऊ पुराण पर, कि हमारे कुंवर साब खुद तो जीतेंगे ही, साथ साथ ही पार्टी की भी नैया पार लगा देंगे।
चुनाव से ठीक पहले वरुण को जमानत मिली। तो उनकी और जय-जय कार होने लगी। चहुंओर सिर्फ एक ही एक ही गूंज ही वरुण पुराण की। लेकिन पुराण रचयिता के मामा जो पीलीभीत में अच्छा खासा रसूख रखते थे। इस बार भी पुराने ढर्रे पर थे। मतलब उनका चुनावी बिगुल वरुण पुराण के खिलाफ फूंका गया था।
रिजल्ट आ गए। कोई जीता, कोई हारा। यहां भी वरुण बाबा की जीत हुई लेकिन वरुण पुराण हार गया । जिस सोच को लेकर इस पुराण को रचा गया । वो पार्टी के लिए एक छद्म साबित हुआ। और बीजेपी औंधे मुंह धड़ाम हो गई। अब सबके निशाने पर एक बार फिर वरुण पुराण ही था। कहा गया इसकी रचना ही गलत हुई। चुनाव से ठीक पहले जो बीजेपी के इस एडीशन को कंठस्य कर लेना चाहते थे, वही अब वरुण पुराण पर लाठी भांजने को उतारू थे। लेकिन कुछ भी हो पार्टी भले ही यमुना पार न लग पाई। लेकिन वरुण पहली बार संसद पहुंच कर अपने पुराण के लीड हीरो जरुर बन गई। वाह रे “वरुण पुराण” बीजेपी की आत्मा को कष्ट पहुंचाने के लिए।