रविवार, 18 अप्रैल 2010

मृग-नयनी

सूनी गलियों में उनका आना
कुछ ऐसा लगता है
ज्यों बदन तपाती गर्मी में
शीत हवाओं का सहलाना
हिम सी सुंदर उसकी छवि में
थोड़ी गर्माहट घुल जाना
मृग-नयनी सी जंगल में वो
है ढूंढ रही कस्तूरी को
नहीं जानती, वो नादां है
वो खुशबू उसमें ही है
मोम सी नाजुक वो गुड़िया है
मखमल के अहसासों सी
मादक उसकी इतनी काया
है मर्तबान में हाला सी
बालों के रेशम को सुलझाती
है जैसे उलझ तसब्बुर में
याद किसी की रह रह आती
न जाने कौन बसा मन में
छणिक कपट क्या उसके मन में
नहीं बताती वो कुछ भी
मेरी उलझन को सुलझा दे
बस बात बता दे वो कुछ भी
सखियों से कहती है कुछ वो
न सीधे मुझसे कह पाई
न प्यार करे, मंजूर मुझे
है नफरत ऐसी क्यों पाई
पता नहीं क्यों उम्मीद बड़ी है
उसके वापस आने की
मेरे सूने आसमान पर
फिर बादल सी छा जाने की
मेरे सूने आसमान पर
फिर बादल सी छा जाने की...

रविवार, 4 अप्रैल 2010

सफलता की आतिश

अद्भुत, अदम्य, साहस की परिभाषा
जिससे दूर रहे हमेशा निराशा
घुंघरुओं की तरह बजने की आदत
एक इत्तेफाक़, एक इबादत
हर किसी को कायल कर देना
बगैर तीर के घायल कर देना
लूट ले बगैर कुछ होते हुए भी
पा जाए बहुत कुछ न कुछ होते हुए भी
ज़िंदगी को मिसाल बनाकर
हर लम्हे को तराश कर
जीने की बड़ी चाह
कुछ पाने की की उससे भी बड़ी चाह
औरों से हटकर
देती है जवाब पलटकर
श्याम वर्ण चेहरे पर
अजब सी मुस्कुराहट
बेबाक, बैलौस
उसकी बातों के घुंघरुओं की
बजने की आहट
सतत् बढ़ते कदम सफलता की ओर
छूना चाहते हैं हिमालय का हर पोर
सच और झूठ में उलझते कदम
हर कुछ हासिल करने का दम
विविध उलझनों से जूझती
निरंतर प्रयत्न करती
हाला सी कशिश चेहरे पर
मदहोशी है उसकी निगाहों पर
अंधेरे में जलती लौ सी प्रकाशित
जैसे वो है कोई
सफलता की आतिश, सफलता की आतिश...