रविवार, 18 अप्रैल 2010

मृग-नयनी

सूनी गलियों में उनका आना
कुछ ऐसा लगता है
ज्यों बदन तपाती गर्मी में
शीत हवाओं का सहलाना
हिम सी सुंदर उसकी छवि में
थोड़ी गर्माहट घुल जाना
मृग-नयनी सी जंगल में वो
है ढूंढ रही कस्तूरी को
नहीं जानती, वो नादां है
वो खुशबू उसमें ही है
मोम सी नाजुक वो गुड़िया है
मखमल के अहसासों सी
मादक उसकी इतनी काया
है मर्तबान में हाला सी
बालों के रेशम को सुलझाती
है जैसे उलझ तसब्बुर में
याद किसी की रह रह आती
न जाने कौन बसा मन में
छणिक कपट क्या उसके मन में
नहीं बताती वो कुछ भी
मेरी उलझन को सुलझा दे
बस बात बता दे वो कुछ भी
सखियों से कहती है कुछ वो
न सीधे मुझसे कह पाई
न प्यार करे, मंजूर मुझे
है नफरत ऐसी क्यों पाई
पता नहीं क्यों उम्मीद बड़ी है
उसके वापस आने की
मेरे सूने आसमान पर
फिर बादल सी छा जाने की
मेरे सूने आसमान पर
फिर बादल सी छा जाने की...

7 टिप्‍पणियां:

Brajdeep Singh ने कहा…

अति उत्तम ,बहुत सुन्दर कविता ,जो व्याख्या कर रही हैं की हैं कोई हैं वहां भी जो रहते हैं दिल मैं हमेशा ,बनी हुई हैं उनकी सुन्दर एबम सात्विक छबी आपके नजरो मैं ,कहना चाहते हो बहुत कुछ ,पर डर लगता हैं शायद उनकी आँखों से ,
दिल के अरमानो को बस सजा देते हो अपनी कविता मैं
मत रोको दिल के अरमानो को ,कह दो जो हैं आज कहना
शर्मा जाये तो बन गयी बात ,वर्ना कह देना की ये तो किसी और का हैं कहना

दिलीप ने कहा…

are khud hi pehel kar lijiye janaab...bahut badhiya...

http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

vandana gupta ने कहा…

सुन्दर रचना।

Tej ने कहा…

पता नहीं क्यों उम्मीद बड़ी है
उसके वापस आने की
मेरे सूने आसमान पर
फिर बादल सी छा जाने की

aur Dileep ki baat bhi maan lijye..

dragon ने कहा…

अच्छा लिखे हो जनाब...छोटा मुंह बड़ी बात...लेकिन एक राय ज़रूर देना चाहूंगा जनाब...आप अपनी रचना को थोड़ा लयात्मकता के साथ लिखा कीजिए...वैसे तो बहुत ही बेहतरीन रचना है आपकी...best of luck...

Urmi ने कहा…

बहुत ही सुन्दर, शानदार और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!

Punity Dwivedi ने कहा…
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