मंगलवार, 3 नवंबर 2009

घासीराम का आतंक

(बीबीसी हिंदी डॉट काम की खबर से प्रेरित होकर लिखा गया है, जिसमें ये कहा गया था कि हाल ही में एक भारतीय टिड्डा ब्रिटेन जा पहुंचा है।)
यूं तो हमारे एक मित्रवर हैं जिनका राशि का नाम घासीराम है। लेकिन न तो वो आतंकी हैं। और न ही घासखोर। उनके अंदर कोई भी ऐसी आदत नहीं कि वो दिन में भोजन करते हों, और रात को समाज की नज़रों से बचकर घास ही चरते हों। लेकिन फिर भी वो घासीराम है। हालांकि उनका शुभनाम कुछ और ही है। खैर यहां हम उनकी किसी कला का वर्णन नहीं कर रहे हम तो आज आपको एक नए घासीराम से मिलवाना चाहते हैं। जो घासखोर भी हैं। और एक प्रशिक्षित आतंकी भी। विलायती लोगों की भाषा में उन्हे ग्रासहोपर कहा जाता है तो हिंदी में उसे घासखोर की संज्ञा दी जा सकती है। कमाल के ढांचाबदर ये घासखोर अपने रंगीन बदन के लिए भी जाने जाते हैं। सतरंगी छटाओं से लैस इनके बदन हर एक पार्ट खुदा की नियामत से बड़े ही अजीबो-गरीब ढंग से सजाया गया है। इनको देखकर ऐसा लगता है कि बड़ा ही गुमान होगा इन्हें अपनी इस विस्मय काया पर। और जब ये घासखोर महाराज उड़ान पर निकलते हैं तो ऐसा लगता है कि कोई अमेरिकी ड्रोन विमान शिकार पर निकला हो। लेकिन इनके लिए एक बात मैने बहुत पहले पढ़ी थी The Ant and the Grasshopper नामक अध्याय में। पाठ इनके चरित्र को बखूबी बयां करता था। कि एडम और ईव के समय की पैदाइश ये घासखोर निहायत ही हरामखोर प्रवर्ति के हैं। पाठ में हमें बताया गया था कि ये घासखोर टिड्डे के नाम से जाना जाता है। लेकिन यहां इनका एक और चरित्र भी आज मैंने खोजा है। वो है बगैर वीसा और पासपोर्ट के विदेश यात्रा करने का। यानि ये घासखोर कबूतरबाजी में भी माहिर हैं। फर्जीवाड़ा करके ये विदेशों की सैर भी कर लेते हैं। हाल ही में ये भारत से चलकर ब्रिटेन के दौरे पर हैं। राजनेताओं की तरह इनके इस गुपचुप दौरे को लेकर ब्रिटेन का खाद्य एवं पर्यावरण संस्थान यानी फ़ेरा हलकान है। सबसे पहले इसी संस्था को पता चला कि इनके देश में कोई घासीराम नाम का घुसपैठिया घुस आया है। न तो उसके पास वीसा है और न ही पासपोर्ट। ब्रिटेन की भी चिंता वाजिव है, क्योंकि घासीराम घास खाने में पारंगत हैं। इन्हें हरियाली कतई बर्दाश्त नहीं। इस मामले में इनके पेटूपन का भी कोई सानी नहीं । जहां इन्हें अपने मन का खाना दिखता है। वहीं इनका आतंक शुरु हो जाता है। और पल भर में ये हजारों एकड़ फसल अपने मासूम से उदर में पचा लेते हैं। नियति का खेल तो देखिए हमारी नुमाइंदगी करने वाले कुछ लोग इन्हीं से प्रेरित जान पड़ते हैं। और कई एकड़ घास घोटाला उनके खाते में चढ़ चुका है। टिड्डा एक कीट है लेकिन वो एक इंसान हैं। लेकिन मैने कई बार सुना है कि इंसान के जीवन में कोई भी उसका आदर्श बन सकता है। पर पहली बार ये सुना है कि कोई इंसान किसी कीट को अपना आदर्श मानता हो। खैर टिड्डे की इसी महामाया ने इसको तालिबानी लड़ाकों जैसा बना दिया है। कई बार ये आत्मघाती का काम करते हैं। क्योंकि इनकी ज्यादातर मौत स्वाभाविक नहीं बल्कि अपनी उदर छुदा मिटाने की खातिर होती है। मतलब साफ है ये जान हथेली पर लेकर शिकार को निकलते हैं। भारत से लेकर पाकिस्तान तक घासीराम का आतंक कई बार देखा गया। कई बार तो ऐसा भी हुआ कि कुछ छोटे देशों की फसल चट कर इन्होंने वहां की अर्थव्यवस्था का सूरत ए हाल ही बिगाड़ दिया। बचपन से ही उड़ान में दक्ष इनकी सेना का हर सिपाही एक कुशल पायलट और कुशल आतंकी है। क्योंकि इनको मारने के सारे प्रयास धरे के धरे रह चुके हैं। और इस बार ये घासखोर ब्रिटेन पहुंच चुका है। इस पर फ़ेरा के कीटविज्ञानी क्रिस मैलंफ़ी ने कहा, “ये सैलानी टिड्डा इतना पेटू है कि जब इसे अलग ले जाकर प्रयोगशाला में रखा गया तो इसने बंदगोभी पर ऐसा हमला बोला कि उसे खाते हुए बंदगोभी के अंदर पहुंच गया.” देखा आपने कितना भयावह दृश्य रहा होगा। घासी राम हैं या ड्रिलमशीन। ऐसा लगता है ये कहीं भी सेंध लगा सकते है। हालांकि ब्रिटेन की फेरा संस्था इस बात से ज्यादा चिंतित नहीं है कि कोई घुसपैठिया उनके दर पर आ चुका है। क्योंकि ब्रिटेन ऐसा मानता है कि मौसम उसके माकूल नहीं है लिहाज़ा वो यहां पर अपनी पलाटून पैदा नहीं कर पाएगा । इसलिए घबराने की जरुरत नहीं। लेकिन आतंकी तो आतंकी होता है। और फिर जब वो एशियाई देश से आया हो । तो मुसीबत का सबब होता ही है। लिहाज़ा घासीराम के आतंक से सावधान। क्योंकि पिछले कई बर्षों से इन्होंने हमारा जीना हराम कर रखा है।

2 टिप्‍पणियां:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुर रोचक पोस्ट है।

मधुकर राजपूत ने कहा…

घासीराम ब्रिटेन की घास खाएंगे हम क्यों चिंता करें। बरतानिया हमारा सोना चट कर गए अब हमारे टिड्डे उनकी फसलें चट करेंगे। बहुत बढ़िया।