सोमवार, 9 नवंबर 2009

कचरा-कचरा “यम की बहना”

ज़रा विचारिए कि जब हमारे सामने यमराज की खौफजदा कल्पना होती है। तो चित्र में भैंसे पर सवार एक बेहद ही बेडौल और खाए-पिए खानदान से ताल्लुक रखने वाले मनुष्य की छवि अकस्मात ही सामने आ जाती है। हाथ में कांटेदार गदा और अपने मन में मौत सरीखा भय लिए यमराज की ये तस्वीर बेहद भयावह है। लेकिन इस बार जब नोएडा से कालिंदी कुंज होते हुए जब मैं दिल्ली जा रहा था। तो मेरी मुलाकात यमराज की बहना से हो गई। फेस-टू-फेस तो नहीं, लेकिन कल्पनाओं के घोड़े दौड़े तो एक छवि उनकी भी मैने उकेर ही ली। इन बहना रानी का स्कूल का नाम उनके पिताजी ने यमुना रखा था । बड़े ही लाड़ और प्यार से पाला गया था यमुना जी को। पश्चिमी हिमालय पर एक फ्लैट भी यमुना जी को दिया गया। जहां से निकल कर निश्चित मार्गों से होकर वे कहीं भी सैरसपाटा कर सकती है। अब यमुना जी की तो चांदी ही चांदी थी। और हां एक बात और समझाई गई थी यमुना जी को, कि आपकी दो सहेलियां गंगा और सरस्वती आपको इलाहाबाद में मिलेंगी। जिनसे मिलकर आपका नाम भारत में बड़ी श्रद्धा से लिया जाएगा। अपने पिता की असीम अनुकंपा से यमुना रानी निकल पड़ीं सैर सपाटे को । शायद ऐसा ही सफरनाम रहा होगा अपनी यम की बहना का।
पुराणों की मानें तो यमुना जी को बेहद पवित्र और कई संस्कृतियों से सराबोर माना गया। लेकिन यहां तो मैने यमुना का उस दिन दूसरा ही चेहरा देखा। अब तक तो लोगों के मुंह से ही सुना था। कि अपने अंदर जीवन दायिनी जल समेटे यमुना अब मैली हो चुकी है। और उस दिन देख भी लिया। कालिंदी कुंज के करीब से बहने वाली यमुना फैक्ट्रियों से निकले रसायन की बदौलत साबुन सरीखी झाग से नहा रही थी। वो झाग इतनी सफेद थी कि मुझे अलास्का की बर्फ याद आ गई । सोचा कि वाह यमुना जी के तो वारे-न्यारे हो गए। बड़ा ही सुंदर स्नान कर रही हैं मैडम। और कमाल की बात तो ये यमुना को भी नहाने की जरुरत पड़ गई। दरअसल वो अलास्का की बर्फ मेरा भ्रम थी। मेरे साथ में ही मौजूद जब मेरे एक मित्र कलीम खान जी ने मुझे प्रदूषण की परिभाषा समझाई तो समझ आया, कि ये डव की झाग नहीं, बल्कि फैक्ट्रियो से निकला वो रसायन है, जो यमुना के जल को जहरीला बना रहा। खैर अब भ्रम का टाटी उड़ चुकी थी। और हकीकत सामने थी। यमुना जी का जल जलजला बन चुका था। ऐसा लग रहा था मानों हजारों मछलियों की मौत का टेण्डर यमुना जी ने ले लिया हो। यमुना जी का पुश्तैनी धंधा एक बार फिर फलीभूत होता जान पड़ रहा था। खैर कसैली गंध लिए यम की बहना का रंग भी उस झाग के नीचे अब काला पड़ चुका था। जिस सूर्य पुत्री यमुना की कल्पना मैं सुंदर कर बैठा था। वो निहायत ही बदसूरत हो चुकी है। अगर मैं कुछ कर सकता तो शायद फेयर-एंड-लवली मुहैया करा सकता था। जिससे वो सात दिनों में ही निखर जातीं। लेकिन फेयर-एंड-लवली से काम न होने वाला था। क्योंकि हजारों कुंटल के मेरे पास तो पैसे भी नहीं थे। बेचारी कचरा-कचरा “यम की बहना” का वो बेनूर चेहरा वाकई आघात पहुंचा रहा था।
जिसके शरीर पर गहनों की कल्पना मैने की थी। उसका शरीर फैक्ट्रियों और मिलों की गंदगी, अधजली लाशों, मरे हुए जानवरों, की गंदगी से सराबोर था। वाकई यम की बहना दुर्दशा के दौर से गुजर रही है। मेरे बस में उसका कोई उपचार नहीं था। शायद सरकार के पास हो। अगर है तो जल्द कुछ करे। वरना ये यम की बहना जीते जी कालकल्वित हो जाएगी।

4 टिप्‍पणियां:

Nitin Bagla ने कहा…

यमुना जी की स्थिति वाकई काफ़ी दर्दनीय है।
वैसे अपनी जानकारी के अनुसार इन्हे यम की बिटिया नही, यम की बहन कहा जाता है

rohit ने कहा…

इन्हें यम की बिटिया कहैं या यम की बहना...लेकिन जनाब आपका ये लेख बेहद ही खूबसूरती से यमुना की बदसूरती बयां कर रहा है...

जनाब आप अपने लेख में भी अपनी लाचारी को ज़रूर ले आते हैं...बहुत अच्छे...

Unknown ने कहा…

नितिन जी आपकी टीका शिरोधार्य और गलती को मानते हुए मैने सुधार कर लिया है। पता नहीं क्यों जब लिख रहा था तो बहन को बिटिया बना बैठा। माफी चाहूंगा

मधुकर राजपूत ने कहा…

भई एक नज़र में तमाम शोध खींच लाए। रुक देखी थी या चलते चलते स्कैन कर लिया था?