रविवार, 27 दिसंबर 2009

ठोकर लाएगी रंगत

मुझे उम्मीद है।
एक रोज़,
ठोकर लाएगी रंगत।
उसका रंग उस दिन,
उस खूं सा लाल नहीं होगा।
जो खूं जमा हुआ है,
कुछ ठोकरों की बदौलत।
गिरेबां में झांककर देखूंगा उस दिन,
कि ठोकर क्यों लगी थी।
लेकिन अब तक,
हर ठोकर जवाब सवाल पूछती है मुझसे?
कि क्यों मुझे हर बार,
इसी पैर में लगना था।
मैं उस सवाल की उलझन में इतना उलझा जाता हूं।
कि अक्सर खुद सवाल करता हूं?
कि क्यों मेरा पैर पत्थर से टकराता है?
मैं कोई राम तो नहीं!
जो अहिल्या मेरी ठोकर से आएगी।
लेकिन उम्मीद है मुझे।
हर ठोकर रंग लाएगी।

2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

मैं कोई राम तो नहीं!
जो अहिल्या मेरी ठोकर से आएगी।
लेकिन उम्मीद है मुझे।
हर ठोकर रंग लाएगी


-बहुत सही!!

Ashok Kumar pandey ने कहा…

अच्छा लिखा है