बुधवार, 14 मार्च 2012

फेसबुक, फलाने सिंह और मेरी फीलिंग

ऑफिस में काम की छीछालेदर से मुक्ति पाई तो बैठ गया चंद पलों के लिए फेसबुक पर फंटियाने। हमारे यहां मध्य यूपी में फंटियाने से आशय होता है एक निठल्ले द्वारा निकम्मेपन का किया जाने वाला कार्य। इसलिए कार्यमुक्ति के बाद मैं ऑफीसरी नियम कानून के मुताबिक निठल्ला हो गया था। फेसबुक से ज्यादा पारिवारिक नहीं होने की वजह से मैं बहुत ज्यादा उसका इस्तेमाल नहीं करता। लेकिन ऑफिस में एक बार फेसबुक जरुर खोल लेता हूं, और कोशिश कर रहा हूं, कि इस डिजिटल रईसी से अपनी रिश्तेदारियां बढ़ा लूं।
अभी अपना खाता खोलने ही वाला था कि कम्प्यूटर चीख कर बोला आपके द्वारा भरा गया कूट शब्द गलत है, या फिर उपभोक्ता का नाम त्रुतिपूर्ण ढंग से दर्ज करवाया गया है। ऐसा एक बार नहीं तीन बार हुआ। बार बार यही जवाब थूथ पोथी के ज़रिए दिया जा रहा था। सब कुछ ठीक। लेकिन फिर भी फेसबुक मुझे स्वीकार नहीं कर रही थी। दिमाग भन्ना गया । कि सहसा मेरी नज़र कैप्स लॉक वाले बटन पर पड़ी। जो बेफिक्री के साथ खुला हुआ था। मैने उसको बंद किया और उसके बाद दोबारा लॉगिन किया। एक कोड को रिक्त स्थान में भरने के उपरांत चटाक से खाता खुल गया। फेसबुक के चारों कोनों में झांकने की कोशिश की गई। पाया कि फेसबुक पर न तो कहीं लाल निशान दिखाई दे रहा है, और न ही कहीं हरा निशान दिख रहा है। लेकिन कंप्यूटर स्क्रीन पर उल्टे हाथ की तरफ लगातार आने वाला एक अदृश्य सा संदेश बार बार ये कह रहा था । कि आपके मित्र फलाने सिंह के खाते पर किसी के द्वारा टिप्पणी की गई। किसी ने फलाने सिंह के खाते को पसंद किया। किसी ने फलाने सिंह को पोक किया। किसी ने टैग । किसी ने शेयर । तो किसी ने उनकी दीवार पर लिख दिया आपको जन्मदिन की पूर्वदत्त बधाई। जबकि फलाने सिंह का जन्मदिन दो दिन बाद था। फिर भी फलाने सिंह को किसी ने वक्त की कमी के चलते पहले ही बधाई दे दी थी। डिजिटल दोस्ती में बधाई संदेशों का ये बेहद द्रुतगामी तरीका है।
फलाने के लिए लगातार संदेश आये जा रहे थे। और बार बार उनके प्रालेख पर भेजे गए संदेशों की बत्ती मेरे प्रालेख पर चमक रही थी। फेसबुक पर फलाने सिंह के पांच हज़ार से ज्यादा मित्र हैं। इस लिहाज़ से उन्हें फेसबुक का करोड़पति तो आंका ही जा सकता है। फलाने एक घटिया शेर फेंकते हैं। तो एक झटके में सौ टिप्पणियां आ जाती हैं। जब बेहतरीन शेर फेंकते होंगे तो कितने आते होंगे मैं तो यही सोंचता रहता और जलता रहता। पड़ोसियों का सुख ही पड़ोसियों की जलन का कारण बनता है। खैर छोड़िए। इस बार फलाने सिंह ने एक ऐसा चोरी का शेर दे मारा है कि टिप्पणियों की बरसात हो गई। रुसवाई की पीड़ा से विकलांग हो चुके इस शेर पर लोग दनादन टिप्पणियां दिये जा रहे थे। कुछ लोग ऐसे भी थे जो उस शेर को पसंद भी कर रहे थे। ऐसा नहीं था कि पसंद करने वालों ने उस शेर पर टिप्पणी नहीं दी थी। कुछ ने टिप्पणी भी दी और पसंद भी किया। ये प्रक्रिया बताती थी, डिजिटल दोस्ती में फलाने सिंह ने काफी साख बना रखी है। वो जो लिखते हैं, उस पर टिप्पणियां दी जाती है, जो लिखते हैं, उसे पसंद किया जाता है। कई बार तो ऐसा भी होता कि जब कोई उनकी स्थिति पर पसंद का चिन्ह नहीं लगाता, और टिप्पणी नहीं देता, तो वो खुद अपने आप को पसंद कर लिया करते । संतोषम् परम् सुखम।
लेकिन कुछ भी हो मैं फलाने की फेसबुक प्रणाली से काफी प्रेरित था। और इसीलिए कई बार देखा देखी में ही फेसबुक खोल लिया करता था। फलाने सिंह गूगल खोलते। उस पर गालिब लिखते । गालिब का कोई शेर मिलता, तो उसमें थोड़ा संपादन करते, और फेसबुक पर स्टेटस के डब्बे में ठेल देते । फलाने के लिए इस तरह की चोरी कोई गुनाह नहीं थी। क्योंकि उन्हें पता है, वो जो लिखते हैं, उसे पसंद किया जाता है, जो विचार प्रस्तुत करते हैं, उस पर टिप्पणी दी जाती है। अगर फेसबुक पर पांच हज़ार से ज्यादा मित्रों वाले इंसान को पांच सौ से ज्यादा कमेंट आते हैं तो उसे फेसबुक का करोड़ पति आंका जाएगा। ऐसा मैं नहीं फलाने सिंह सोचते हैं।
शायद भारत में जब से फेसबुक का उदय हुआ था, तभी से फलाने सिंह फेसबुक पर बड़े ही धर्मनिरपेक्ष अंदाज़ में मित्रता के हाथ बढ़ाए हुए थे। इसीलिए उनके डिजिटल दोस्त पांच हज़ार से ज्यादा थे। और मेरे सिर्फ चार सौ कुछ। एक दिन मैने फलाने से उनके संदेशों पर आने वाली टिप्पणियों का राज़ पूछा तो उन्होने बड़े ही सरल अंदाज़ में बताया।
पहले एक काम करो।
नियमित अपना खाता खोलो।
खाते पर कोई निमंत्रण आये उसे स्वीकार करो।
निमंत्रण न भी आये तो तुम लोगों को अपनी तरफ से निमंत्रण भेजो।
रोज़ाना एक घंटे फेसबुक पर बैठने की प्रैक्टिस करो।
जो भी दिखे, उसे अपनी तरफ से निमंत्रण भेज दो।
कोई भी अपने स्थिति विवरण में सुधार करे तो उस पर तुरंत टिप्पणी दो।
कोई भी शोक गीत से लेकर प्रेम गीत तक लिखे उसे तुरंत पसंद करो।
जितना शीघ्र किसी पर टिप्पणी करोगे, या उसे पसंद करोगे, उतनी ही शीघ्रता से तुम्हारे मित्रों की संख्या बढ़ने लगेगी।
किसी का स्थिति विवरण बहुत अच्छा लगे, तो उसे लोगों में बांट दो।
ऐसा करने से लोग तुम्हारे मुरीद हो जाएंगे, और तुम फेसबुक के शहंशाह हो जाओगे।
फलाने सिंह की ये बात मुझे बड़ी ही अच्छी लगी, कि अगर डिजिटल दोस्तों की संख्या बढ़ानी है तो सिर्फ एक घंटे का श्रम करना है, और बस चंद गालिब के शेरों की चोरी कर उनका संपादन करना है।
वाह भई वाह
कमाल का विचार है।
हींग लगे न फिटकरी और रंग चोखा।
अब तो हम भइया ऐसे ही दोस्त बनाएंगे। पांच हज़ार नहीं पूरे दस हजार करके दिखाएंगे। क्योंकि फलाने सिंह की तरह हम फेसबुक पर एक घंटा नहीं पूरे दो घंटे बिताएंगे। फिर बताएंगे कि कैसे इतराया जाता है फेसबुक की टिप्पणियों पर। हुंह। जाओ सनीचर मेरे बंगला से। अब क्यों राखी देर लगाये। बड़े आए फलाने सिंह।

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