गुरुवार, 18 मार्च 2010

मइय्यत से पेज थ्री तक ‘मेकअप वाली भठियारन’

(मैडम को भठियारन का टाइटिल इसलिए दिया जा रहा है। क्योंकि एक रसूख युक्त खानदान में जन्म लेने के बाद भी वो अपने जीवन में सिर्फ भाड़ ही झोंक पाईं थी। वो इंसान का रक्त चूस कर उस रक्त को भाड़ में घासलेट की तरह इस्तेमाल किया करती थीं।)
मइय्यत थी, तो याद आया मैडम भठियारन को। कि आज सफेद साड़ी पहननी है। लाली नहीं लगानी है। नाखूनी(एलीट रुप में नेल पॉलिश) नहीं लगानी है। बाल ड्रायर से नहीं सुखाने हैं। गले में हार-जीत नहीं पहननी है। नाभी में नथ नहीं डालनी। कानन-कुंडल नहीं डालने। हाथ में काली जुराब नहीं पहननी। चेहरे पर फाउंडेशन नहीं लगानी । इत्र फुलेल से कोसों दूर रहना है। और एक शरीफ ढोंगी की तरह दिखना है। जनाज़े वाला घर किसी दुख प्रदर्शन वाली पार्टी का घर होता है। ऐसा भठियारन मानती थी। जहां पहले से ही कई ढोंगी अपने विभिन्न स्वांग का प्रदर्शन कर रहे होंगे । वे ऐसा ही सोच कर किसी की मइय्यत में जाती थी। कुल कर मिलाकर आलम जो बनता था। वो ये था कि हंसनी इस बार कौवे की चाल चलने को मजबूर हो रही थी। वो आज से पहले हंसनी ही थी। वो ही ऐसा मानती थी। हमारी नजरों में तो वो कौवा ही थी।
मैडम अब अपनी फुर्र-फुर्र फरारी से मइय्यत वाले घर को निकल चुकी थीं। मन ही मन उन विधियों के बारे में सोच रही थीं। कि कैसे लोगों को चूतिया बनाना है। यानि संवेदनशील होने का ढोंग किस विधि से करना है। हालांकि ये कोई पहला मौका नहीं था जब पेज थ्री वाली मैडम को किसी की मइय्यत में जाने का मौका मिला हो। इससे पहले भी वो कई बार वो लोगों को बड़ी सफाई से बेवकूफ बना चुकी थीं। लेकिन हर बार रचनात्मक विचारों के साथ भी चूतिया बनाना होता है। इसलिए वो फुर्र फुर्र फरारी में कुछ सोच रहीं थीं। मैडम की सोच पर कलियुगी तुलसीदास की कुछ पंक्तियां याद आती हैं ‘केहि विधि नाथ बनावऊं चुतिया तोरा’।
करीब एक सौ तीस किलो मीटर प्रतिघंटा की चाल से मैडम दुख मानने पहुंच चुकी है। उस घर में जहां कोई परालौकिक हो चुका है। माहौल पुरानी फिल्मों में प्रेमिका के पुरुष मित्र की मृत्यु सरीखा दिखाई पड़ रहा है। बैक ग्राउंड में चल रही सैड धुन माहौल को करुणामई बना रही है। घर में मौजूद सौ डेढ़ सौ लोग दुख प्रकट करने को पिले हुए हैं। कुछ ढोंगी हैं तो कुछ वास्तव में दुख प्रदर्शित करने को आए हुए हैं। तभी फुर्र फुर्र फरारी वाली मैडम घर में प्रविष्ट होकर माहौल का जायज़ा लेती है। देख रही हैं। कि कौन-कौन किस-किस विधि से दुखी दिखने की कोशिश कर रहा है। मैडम को पता नहीं क्यों इस अपने आप को दुखी जैसा प्रकट करना किसी चुनौती जैसा लग रहा है। शायद वो लेट पहुंची थीं इसलिए।
लगभग पंद्रह मिनट तक माहौल का जायज़ा लेने के बाद। घड़ियाल (एलीट मैडम) की आंखों में आंसू दिखाई देने लगे। करुणा का सागर आंखों से छलक रहा था। और लोग बरबस ही चूतिया बने जा रहे थे। मैडम अपने मकसद में कामयाब हो चली थीं। और अब जो आंसू दिखाई दे रहे थे। वो दुख के नहीं बल्कि खुशी के थे। क्योंकि वो कई लोगों से आगे निकल चुकी थीं। दुख प्रदर्शन के मामले में। दुख की बेला में खुशी के आंसू। नज़ारा कैसा होगा। आप अंदाज़ा लगा सकते हैं। इस बीच जब वो अपने रेशमी रुमाल से चेहरे पर पोछा लगातीं। तो इस बात का भी ध्यान रखा जाता कि उनके गालों की झुर्रियां दिखाई न दें। यानि चेहरे पर रुमाल रुई के किसी फाय की तरह इस्तेमाल में लाया जा रहा था।
कई लोग अब एलीट मैडम के चेहरे पर तनाव देखकर उनसे मिलने आने लगे थे। सभी को पता था कि मैडम रसूख युक्त हैं। इसलिए ज्यादातर लोग उनसे इसी लिए मिल रहे थे क्योंकि मैडम कई संगठनों की मालकिन थीं। और इस खास मौके पर मेल मिलाप भावी जुगाड़वाद में तब्दील हो सकता था। कई लोग अब उस परिवार का दुख छोड़ मैडम के व्यक्तिगत दुख में शरीक हो चले थे। लेकिन कुछ लोग बीच-बीच में ये कहना नहीं भूल रहे थे। बड़े अच्छे इंसान थे। चले गए। अभी उम्र ही क्या थी। हालांकि जिसकी मौत हुई थी। वो 95 साल का था। और बड़ी ही शालीन मौत मरा था। लेकिन फर्जी लोग। फर्जी बातें। फर्जी संवेदनाएं उस दुख भरी महफिल में चलन में आ चुकी थीं। मैडम को मइय्यत में आए एक घंटा हो चुका था। और इन साठ मिनटों में मैडम, ढोंग के सिर्फ तीस आंसू ही गिरा पाईं थीं शायद। इस बात का उन्हें अफसोस भी था। वो चाहती थीं। कि उनके आंसू उस महफिल में दुख की सुनामी का कारण बन जाएं। लेकिन वो ऐसा कर न सकीं।
समय बीतता जा रहा था। और मैडम अब ऊब रही थीं। शायद उन्हें कहीं जाना था या किसी का इंतज़ार था। क्योंकि वो बार-बार अपनी नाजुक कलाइयों पर बंधी घड़ी को घूर रही थीं। निसंदेह पहली वाली बात ही सही होगी क्योंकि मइय्यत में और दुखियारों का इंतज़ार करना उनकी बर्दाश्त से बाहर की बात थी। यानि अब उन्हें कहीं तिड़ी होना था। शायद किसी पार्टी में। या फिर कहीं और। यहां भी पहली वाली बात ही सही निकली । क्योंकि अब वास्तव उन्हे कोई पेज थ्री वाली पार्टी भी निपटानी थी। लिहाज़ा वो सबसे और सब उनसे विदा लेकर निकल लिए। अपने-अपने गंतव्य की ओर। फुर्र-फुर्र फरारी अब सीधे उनके निजी सौंदर्यालय (ब्यूटी पार्लर) की ओर रुख कर चुकी थी। ये ब्यूटी पार्लर मैडम के इमरजेंसी पीरियड में काम आता था। जैसे जब वो अपने घर से बन संवर कर न निकल सकीं हों। तो वो रास्ते में अपने निजी सौंदर्यालय में जाकर बन ठन लें। मैडम की उम्र जरुर पचास की थी। लेकिन सौंदर्य प्रसाधनों के गजब के इस्तेमाल ने उनकी रुप रेखा को आज भी जीवित रखा था। सही मायने में तो ये कहें कि जितना सुंदर वो मेकअप के बाद खुद को समझतीं थी। वास्तव में उतनी थीं नहीं। क्योंकि उम्र के पड़ाव पर कोई मेकअप काम नहीं आता। आखिर कब तक छिपातीं अपनी ढलती उम्र को। वो तो भला हो आधुनिक सौंदर्य प्रसाधनों का जो इस पंच लाइन के साथ बाज़ार में उतरती हैं। कि ‘आप की त्वचा से तो आप की उम्र का पता ही नहीं चलता’। लेकिन मैडम की त्वचा का पता जैसे तैसे चल ही जाता था। फिर भले ही वो कितना रंग रोगन ही क्यों न कर लें।
अब मेकअप वाली भठियारन सज धज कर पेज थ्री वाली पार्टी की ओर रुख कर चुकीं थी। यहां मैडम ने उन सारे सौंदर्य प्रसाधनों इस्तेमाल किया था। जिनका इस्तेमाल उन्होंने मइय्यत वाली कथित पार्टी में नहीं किया था। पचास की उम्र में ताजे मेकअप ने उन्हें पैंतिस का बना दिया था। इससे वो खुश भी थीं। उनकी खुशी इस बात से पता चलती थी। कि गाड़ी में बैठकर महज दो किलोमीटर की दूरी में ही वो बीस बार आइना निहार चुकीं थी। बेशर्म आइना अगर कुछ बोल सकता तो उन्हें उनकी औकात बता ही देता।
मैडम पार्टी में पहुंच चुकी हैं। पार्टी में बिल्डर, फिल्मकार, कलाकार, पत्रकार इत्यादि इत्यादि मौजूद हैं। सभी बड़े प्रोजेक्ट की चर्चाओं में मशगूल हैं। कई लोग मइय्यत से ही बगैर किसी चेंज के पार्टी में पहुंचे थे। लेकिन मैडम फुल चेंज थीं। उनका बदला बदला सा नूर नज़र आता था। बालों में खिजाब, मुंह पर मेकअप का लेप नज़र आता था। सभी की नजरें अकस्मात् ही मैडम पर टिक जाती हैं। और पुन: उन्हें ठीक वैसे ही घेर लिया जाता है। जैसे कई सारे कुत्ते कातिक के महीने में एक कुतिया को घेर लेते हैं। और उस अकेली कुतिया पर अपना अधिकार जताने की कोशिश करते हैं। यहां भी मैडम अपनी टीआरपी से खुश थीं। उनके हम उम्र कई लोग उन पर लाइन मारने को उतारु थे। लाइन मारने की सभी की अलग-अलग अदा थी।
इस पार्टी में जो बात चर्चा का विषय थी। वो ये थी कि हाल ही में मैडम ने एक गैर जिम्मेदार संगठन खोला है। मेरा मतलब गैर सरकारी संगठन से है। कई लोगों को साथ लेकर इस संगठन की स्थापना की गई है। लिखित रुप में इस संगठन का मकसद गरीब और बेसहारा लोगों की मदद करना है। लेकिन किताबी बातें किताबी ही होती हैं। संगठन का असल मकसद लोगों का असामाजिक कार्यों से ध्यान बंटा कर उस गैर सरकारी संगठन की ओर ध्यान केंद्रित करना था। जो गैर जिम्मेदार था। मैडम के दूसरे संगठनों में कार्यरत सभी मजदूर इस बात को जानते थे। लेकिन चुप रहते थे। नौकरी चली जाने का डर था।
अपवाद स्वरुप किसी बड़े लेखक ने ठीक ही कहा था। कि औरत के हाथ में सत्ता और शासन का जाना वैसे ही खतरनाक होता है। जैसे जंगल में किसी शेर के सामने बकरी को खड़ा कर देना। बकरी की शामत आनी ही है। ठीक वैसा ही डर मैडम के मजदूरों के मन में भी था। बहरहाल पार्टी में गैर जिम्मेदार संगठन को लेकर चर्चा जारी थी। मैडम उपलब्धियों को उंगली पर गिनाए जा रहीं थीं। सच भी यही था कि उनकी उपलब्धियां उंगलियों पर ही गनाई जा सकतीं थी। लेकिन उनके चुतियापे भरे कारनामों के लिए हजार पेज की डायरी भी कम पड़ेगी।

5 टिप्‍पणियां:

Brajdeep Singh ने कहा…

aap jo back ground banate ho na to bilkul aisa hi mehsoos hota hain jaise premchand ji k gaban upanyas main hota hain ,aisa lagta hain ye saari cheeeje sajeev ho gyi hain
bahut sundar charitra chitran ,ek ghor asamazik tttha koroop aurat ka

मधुकर राजपूत ने कहा…

आपके लेख से सिद्ध होता है।
1.जब उम्र मेकअप करती है तो कोई मेकअप काम नहीं करता।
2. भठियारन मैडम कातक की कुतिया हैं।
3. एनजीओ देश और सरकारी पैसे को घुन की तरह खा रहे हैं।
4.पेज थ्री जाने वाले लोगों को तेल पर सब्सिडी नहीं मिलने चाहिए।
5. धन मिलने से बुद्धि नहीं आती, इसीलिए इन्हें धनपशु कहा जाता है।
6. ये सोचते हैं कि यही सबको चूना लगा रहे हैं और इनके तथाकथित अपने ही इनकी नाक के बाल तोड़ ले जाते हैं लेकिन इन्हें पता नहीं लगता।
और भी तमाम....

dragon ने कहा…

वाह कमाल कर दिए हो जनाब...मेकअप वाली ये भठियारन सही मे कातक की कुतिया ही है...क्योंकि उसकी भी उम्र कितनी ही हो "कुत्ते" फिर भी उस पर मुंह मारने से बाज नहीं आते...लेकिन कास बात ये है की उस कुतिया पर हर उम्र का कुत्ता मुंह मारता है...यहीं तो सिर्फ उसके हमउम्र ही थे...

Unknown ने कहा…

लेख अच्छा है। भठियारिन की संज्ञा भी उत्कृष्ट है। लेखन शैली उत्तम है।

बेनामी ने कहा…

वालिया की बीवी ममता वालिया के लिए लिखा है क्या अनुपम