बुधवार, 3 सितंबर 2008

अब बस करो कोसी मां.....

आज दुख होता है जब बिहार का जिक्र ज़ुवां पे आता है....कोसी ने इतने दुख दिये हैं बिहार को...चारों ओर सिर्फ तबाही ही तबाही का मंज़र दिखाई देता है...मधेपुरा, सुपौल, पूर्णिया, को लील चुकी है कोसी...आस नज़र नहीं आती कहीं अब जीवन की...शमशान सा सन्नाटा पसरा है चारों ओर...जो पानी कभी जीवन की डोर को लंबाई देता नज़र आता था वही पानी अब उस डोर को छोटा करने पर उतारू है...न जाने क्या ग़लती हो गई बिहार से...हम आज उस मंज़र को बयां तो नहीं कर सकते लेकिन थोड़ा सा महसूस जरूर कर सकते हैं...यकीन मानिये मैं वो दर्द लिखते हुए भी बयां नहीं कर पा रहा...जल, जंगल, जमीन, और जीवन को ख़त्म करने में लगी हुई ये कालिंदी और न जाने कितनों के घरों के उजाड़ेगी, कितनों को यतीम करेगी, और कितनों को बेवा करेगी...तबाही का मंजर ऐसा है हर तरफ कि बेज़ुबां जानवर भी सहमे सहमे नज़र आते हैं...लगता है कि वो ये बात कहना चाहते हों कि जिस पानी को वो चारा खाने के बाद पिया करते थे आज वो पानी इतना बेरहम कैसे हो गया...लोग कहने को मजबूर हो गए हैं कि कोसी मां अब बस करो...अब बहुत हो चुका...

कोई टिप्पणी नहीं: