सोमवार, 22 सितंबर 2008

मां का आंचल

आजादी पाने की खातिर हमने उनको धूल चटाई थी
जंजीरो में जकड़ी मां की जब जब याद सताई थी
खून के आंसू रोते भारत ने जब मारा अंग्रेजों को
तब पराधीन स्वाधीन हो गया मां का आंचल पाने को
दो सौ साल लगे हमको, आजादी को पाने को
मां का दामन लहर रहा था, जीत हमारी पाने को
1857 में, हाल बुरा था, भारत का
इसी समय सामना हुआ, अंग्रेजों से मंगल पांडे का
अब इज्जत तार तार करते उन अंग्रेजों की शामत थी
लक्ष्मी बाई थी जब उतरीं वो अंग्रेजों की आफत थीं
ब्रटिश हुकूमत ऐसी थी कि भारत सिसक सिसक कर रोता था
याद सताती जब जब मां की हर हिंदुस्तानी रोता था
दर्द छिपाकर, लहू बहाकर, आंसू के सैलाबों में
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई कूद पड़े मैदानों में
गांधी, भगत, सुभाष, और शेखर, चोला ओढे आजादी का
अंग्रेजों को मार भगाना, अब पेशा था, इन सब का
टूटी सांसे, टूटा घर, दम तोड़ रहा था भारत तब
सोंच रहा था, हर हिंदुस्तानी, आजादी के सपने तब
हिंदुस्तानी धरती पर अबला बलिबेदी चढ़ बैठी थी
हर नारी की आंख में आंसू आजादी जो पानी थी
भूख प्यास सब छोड़ छाड़ कर टूट पड़े अंग्रेजों पर
धधक रही थी आग यहां, आजादी की हर दर पर
लाठी, गोली, गाली खाकर वो न तोड़ सके थे भारत को
माया ऐसी भारत मां की सब कूद पड़े आजादी को
सबका मंदिर, सबकी मस्जिद, गिरिजाघर गुरूद्वारा था
हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई भारत सबको प्यारा था
इसी प्यार और मां की खातिर फिक्र नहीं थी लोगों को
घर से हर कोई था निकला आजादी को पाने को
ख़त्म हुई जब ब्रिटिश हुकूमत जश्न मनाया भारत ने
आजादी पाने की खातिर कुर्बानी दी थी भारत ने
यही हकीकत यही सत्य है, हम एक रहें इस भारत में
न कोई राज कर सके हम पर, स्वाधीन रहें इस भारत में
अनुपम मिश्रा.............

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