बुधवार, 19 मई 2010

तीन मिनट की ‘लोन व्यवस्था’

भारत एक कृषि प्रधान देश है, साथ ही तुर्रमखाओं का देश भी है। यहां तुर्रमखाओं ने अपनी तुर्रमई की बदौलत पड़ोसियों को जलने-कुढ़ने पर मजबूर कर दिया है, ‘पड़ोसियों की जलन आपकी शान’ सभी को याद होगा। कि किस तरह से एक कंपनी की टीवी खरीदने से दूसरों के जलन की व्यवस्था हो जाती है। यहां हमारी शान से कोई मतलब नहीं विशेष प्रायोजन तो दूसरे की जलन से है। नब्बे के दशक में विलासकारी वस्तुओं की खासी कीमत हुआ करती थी। इन वस्तुओं को घर में सजाने के लिए पहले योजनाबद्ध होना पड़ता था, उसके बाद अगर योजना अमल में आ जाती थी, तो घर में अच्छे पकवानों के साथ उस योजना का शुभारंभ भी हो जाता था। मसलन बीस हजार रुपए में अगर रंगीन टेलीविजन बाज़ार में बिक रहा है, तो तुर्रमखां को कम से कम बीस बार सोचना पड़ता था, उसके बाद कहीं जा कर जोड़-जुगाड़ भिड़ा कर रंगीन स्क्रीन टीवी घर पर आ पाता था। और यहीं से शुरु हो जाती थी, पड़ोसी के जलने की व्यवस्था।
उस वक्त विलासकारी समस्त वस्तुओं के दाम इतने ज्यादा हुआ करते थे, कि सरकारी नौकरी करने वालों के बस के बाहर की बात थी, कि वो हर सुविधा का लुत्फ उठा सकें। जिस तरह से जब ताकत तानाशाह बन जाती है तो विनाश की बू आने लगती है। ठीक वैसी ही कहानी है भारत में लोन व्यवस्था की, यहां धन संपन्न होना समाज में पैठ है, ख्याति है, डूड है, हंक है, एलीट है, और न जाने क्या क्या, लेकिन अगर आप धन संपन्न नहीं हैं तो, आप नाकारा हैं, काहिल हैं, मजबूर हैं, गरीब हैं, सस्ते हैं, निरीह हैं, हैरान हैं, परेशान हैं, और न जाने क्या क्या।
चलिए शुरु करते हैं लोनिंग व्यवस्था के बारे में। ये आज के युग में सभी के लिए ठीक वैसे ही जरुरी है, जैसे एकाउंट्स में व्यापार आरंभ करने की जर्नल एंट्री। अमीर हो तो लोन, गरीब हो तो लोन, कहीं के नहीं हो तो भी लोन। लोन यूनिवर्सल है, तुर्रमखां ने लिया लोन और बनवा ली कोठी, खरीद ली कार, लगवा लिया एसी, और बन गए एलीट, ब्याज चुकाए पड़े हैं, नौबत ये आ गई है कि जो खरीदा था वो धीरे धीरे बेंचना पड़ रहा है। यही तो कर्ज की माया है, और कर्जदार का दुर्भाग्य।
बड़ी पुरानी कहावत है, किसान कर्ज में जन्म लेता है, और कर्ज में मर जाता है। लेकिन फिर भी कर्ज लेता है, ले भी क्यों न, कृषि प्रधान देश है तो क्या, यहां किसानों की इज्जत करने वाले न तो हम हैं और न सरकार । हालांकि सरकार ने तो इस बार ऋण माफ कर दिया, लेकिन साहूकार कोई मर थोड़े ही गए हैं, किसान उनसे और लोन लेंगे, और साहूकार उनसे और ब्याज लेंगे। नतीजा ये निकलेगा कि बेचारे की लुटिया डूब जाएगी। उसकी ज़मीन पर सामंतवाद का अंगूठा लगा दिया जाएगा । और किसान फिर मजबूर हो जाएगा कर्ज में मरने को।
लोन की बात चली रही है तो एक साइन बोर्ड पर आपकी नज़र ले जाता हूं, जो कहता फिरता है कि “तीन मिनट में लोन” । ये तीन तिगाड़ा जहां भी होता है काम बिगाड़ता ही है। लेकिन किसी रचनात्मक व्यक्ति द्वारा रखी गई ये पंच लाइन, बड़ी सफाई से चूतिया बना रही है। पहले तो ये सुनें कि तीन मिनट में कर्जदार बनाने वाली कंपनिया, तीस चक्कर कटवाती हैं, उसके बाद कहीं जाकर इंसान को कर्ज में डुबा दिया जाता है। औद्योगिक क्रांति है, सभी को कर्ज चाहिए किसी को इनकम टैक्स से बचने के लिए तो किसी को पड़ोसियों की जलन के लिए, तो किसी को दो जून के लिए। ऐसे में तीन मिनट की लोन व्यवस्था बड़ी आसान नज़र आती है।
ये तीन मिनट की लोन व्यवस्था दूर का ढोल है जरा उनसे पूछिएगा जो इस सुविधा का कथित तौर पर आनंद उठा चुके हैं। उनके लिए आज का आनंद कल का रोग बन चुका है। हायर परचेज़िंग और इंस्टॉलमेंट सिस्टम ने सिस्टम खराब कर दिया है। ये व्यवस्था, उदारवादी युग में साझीदार बन चुकी है। एक ऐसा साझीदार जो सिर्फ सुख का साथी है, दुखों के दौर में वो मौत बनकर प्रकट हो जाता है। लोन लेने से पहले विचारना ये कर्जदार की फितरत नहीं, यही कारण है कि बाद में उसे कई बार लोन माफियाओं के लट्ठ खाने पड़ते हैं। लोनिंग के पीछे बैठी लोन माफियाओं की ताकत कर्जदारों की नींद हराम कर देती है। ये इतने ताकतवर होते हैं कि अगर आपने अपनी किश्त वक्त पर नहीं जमा की तो ये आपका आने वाला वक्त खराब कर सकते हैं। लठैतों को ट्रेंड करने वाली ये निजी कर्ज संस्थाएं बरसाती कुकुरमुत्तों की तरह फैली जा रही हैं। एक कर्जदार के पीछे चार लठैत नियुक्त किए जाते हैं। जो किश्त वक्त पर नहीं भर पाता उसे घर से उठवाने का माद्दा भी रखते हैं ये। प्रशासन इनकी दौलत और रसूख के सामने खुद को बौना साबित कर लेता है। यही कारण है कि कर्ज का कैंसर लाइलाज बीमारी बनने की कोशिश करने लगा है।
खैर तुर्रमखां अब लोन लेंगे, इस बात का तो पता नहीं, लेकिन वो लोनिंग प्रक्रिया के परिणामों को नहीं भूलेंगे। कई बार ऐसा होता है कि दूसरों को जलाने के चक्कर में हम खुद जल जाते हैं। जलन बड़ी महान है, दूसरों को हो जाए तो समझिये हमारे लिए सबसे बड़ा सुख । तो कवि कहता है कि लोन लेकर तुर्रमखां न बनिए। दूसरे आपके सुखों से जलेंगे, ये मत सोचिए। बस ये सोचिए कि अब कर्ज नहीं लेंगे।

2 टिप्‍पणियां:

Madhukar ने कहा…

bikhar gaya. Subaddha nahi hai.

Unknown ने कहा…

अनुपम भाई आपने ठीक कहा, विनाश काले विपरित बुद्धि......