बुधवार, 15 अप्रैल 2009

दइया रे दइया ‘बदल गई वो’

छरहरी काया, इठलाता बदन, बिल्कुल हिरणी के जैसा। आंखों में तीर सा चुभने वाला शार्प सा काजल, होंठों पर गुलाब की झलक। एक दम मादक सी हंसी। और उस पर गालों में पड़ने वाला भंवर। ओफ्फो एक अनूठी याद थी वो। लगता था कुदरत ने सारी फुरसत उसी पर उड़ेल दी हो। उसके बदन का हर एक पार्ट बड़े करीने से सजाया था खुदा ने। उस हूर का नूर कुछ ऐसा ही था। बस जहां से निकल जाए। हाएतौबा मच जाए। मार ही डालोगी, मर जांवा गुड़ खाके, मेरी दुकान पे आना मेरी जान, जैसे कमेंट उसे मिला करते थे । लेकिन उस पर कोई फर्क नहीं पड़ता था। पता नहीं कौन सी मिट्टी से बनी थी। सबको कतार में ही रखती थी। किसी की सीट कंफर्म ना की उसने । और एक दिन न जाने कौन लंगूर उसे ले उड़ा। किसी को हवा तक न लगी। क्योंकि जिन गलियों से वो निकलती वहां से अब उसके बदन पर लगे इत्र की सुगंध भी न आती थी। कई दिन हो गए । लोग इंतज़ार करते करते थक गए। कि न जाने वो लाल दुपट्टे वाली कहां चली गई। उसी की राह तकते तकते छोटे की सात आठ चाय हो जाया करती थीं। लेकिन अब तो छोटे की दुकान भी सूनी सूनी रहती है। सब ऐसे उदास रहते जैसे उनकी अर्धांगिनी उन्हे किसी पराये मर्द के साथ भाग गई हो। पप्पू भइया तो उसके ग़म में ऐसे दीवाने हुए कि रामप्यारी का सेवन करने लगे। रात को जब उसका इंतजार करके घर लौट रहे होते तो कभी कभी हम लोग मिल जाया करते थे । बस शुरु हो जाती थी फ्रस्ट्रेटेड लवर की फ्रस्ट्रेटेड लव स्टोरी। यार वो चली गई। उसका इंतजार करते करते मेरे घर का बजट बिगड़ गया और वो है कि बिना बताए चली गई। हाय री बेवफा सनम। पप्पू की हालत देख कर एक जुमला बिल्कुल फिट बैठ रहा था। कि ‘पुतलियां पथरा गईं , और गर्क चहरा हो गया, डाल दो मुंह पर कफन, कह दो कि पर्दा हो गया’ । बेहद बुरे दौर से गुजर रहा था पप्पू। खैर रात गई बात गई। होली के आसपास की बात है। वो दिन हम सभी मित्रों को हमेशा याद रहेगा । सब रंग खेल रहे थे । छोटे की दुकान पर एक बार फिर जा पहुंचे । यादों को ताजा करने क्योंकि फिछली होली मैं भी घर नहीं जा पाया था। सो इस बार हम सब फिर साथ थे । पप्पू भी मौजूद थे। सब बेहद खुश थे। पुरानी यादें ताजा कर रहे थे। कि अचानक पड़ोस वाले मकान पर नज़र गई। उस मकान की छत पर लोग काफी लोग मौजूद थे। और उनके बीच मौजूद थी वो हुस्न ए बहार। शादी के बाद पता नहीं कब वापस आई। किसी को न पता चल पाया। सबकी निगाहें ऊपर ही थीं । टकटकी लगाए बस सारे के सारे छैला बिहारी निहारे चले जा रहे थे। इतने में वो नीचे उतर आई अपनी पुरानी सखियों के साथ। लेकिन जैसे ही वो नीचे आई। सबको झटका लगा। क्योंकि जिस हुस्न ने गली के 20 नौजवानों को मजनू बना दिया वो वो हूर कुछ और ही हो गया था। और अनायास ही पप्पू के मुंह से प्रस्फुटित हुआ ‘दइया रे दइया बदल गई वो’ । जिसकी जवानी के चर्चे चहुंओर से । वो शादी के बाद क्या हो गई। न तो वो छरहरी काया ही रही । न वो काजल । न वो गुलाब सी हंसी । सबकुछ मुरझाया सा लग रहा था। सब चकित थे । और एक दूसरे का मुंह ताक रहे थे। क्योंकि पहले तो उसकी त्वचा से उसकी उम्र का पता ही न चलता था । और अब है कि उम्र ही उम्र नज़र आती है। मेरा तो मन मान ही न रहा था । कभी मैदा की भेंड़ रही उस मनचली का रंग भी डाउन हो गया था। चूंकि पप्पू तो नशे में चूर था । और सब जानते हैं नशे में आदमी शेर होता है । किसी बात का डर नहीं होता। रोक ही लिया लड़की से आंटी हो चुकी श्रीमती जी को। एक ही सांस में सैकड़ों सवाल दाग डाले। और ये भी कह डाला हम से ही सेट हो जातीं तो क्या बिगड़ जाता । चली गईं लंगूर के पास। अब भला लंगूर की सोहबत में कोई इंसान रह सकता है क्या ? हीहीही....रामप्यारी का जोरदार भभका और फिर ये हंसी। और अचानक एक जोरदार साउंड। चांटा जड़ने का । बेचारे पप्पू का गाल हरे से गुलाबी हो गया। सब तितर-बितर हो गए उस एक विस्फोटक चांटे की बदौलत। लेकिन जिस चांटे का कहर पप्पू पर पड़ा। वो टस से मस न हुआ। नो डाउट ही वाज़ ए ब्रेब पर्सनालिटी। और फिर गिरते हैं शह सवार ही मैदान ए जंग में। लेकिन कुछ देर के लिए वातावरण शून्य हो गया था। लेकिन पप्पू की बात में वाकई सच था । उसकी ज़ुबान से उस दिन निकला एक एक शब्द उसकी उस व्यथा को बता रहे थे। जो उसने विरहा में बिताए थे। आज अचानक उसे देख मन का सारा गुब्बार सामने आया । जिसका रिज़ल्ट चांटे के रुप में पप्पू के गालों पर साफ दिखाई दे रहा था। खैर जो भी हो । वो वाकई अब वैसी नहीं रही थी । जिसकी बदौलत छोटे चाय कार्नर की का लाभ कभी-कभी 9000 रु प्रति माह को पार कर जाता था। उसके इंतजार में लोग चाय की रेलमपेल जो मचा देते थे। लेकिन फिर वही बात अब वो दिन कैसे लौटेंगें। अब लोग उसका इंतज़ार बिल्कुल नहीं करेंगे। क्योंकि ज़माने लद गये, जब पसीना गुलाब था, अब मलते हैं इत्र, पर बदबू नहीं जाती। और उसकी काया वाकई बदल गई है। सोच कर हैरत सी होती है। और लगता है अब किसी और का इंतज़ार करना पड़ेगा। लेकिन दुआ भी करनी होगी कि अब दइया रे दइया न हो। औऱ पप्पू की कोई घरवाली हो जाए।

4 टिप्‍पणियां:

मधुकर राजपूत ने कहा…

साहब जब उम्र मेकअप करती है तो कोई मेकअप काम नहीं करता। झुकाव का आधार होता है सेक्स और सेक्स होता है जवानी में। बुढ़ापे में वजन ढोने के अलावा कुछ नहीं।

Urmi ने कहा…

पहले तो मै आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हू कि आपको मेरी शायरी पसन्द आयी !
मै औसट्रेलिया मे ज़रूर रहती हू पर मै पली बडी हू झाडखन्ड जमशेदपुर मे और मै हिन्दी शायरी और कविता लिखने मे बहुत दिलचस्पी रखती हू !
आप तो बहुत ही सुन्दर लिखते है और मेरा ये मान्ना है कि आप बडे ही उन्दा लेखक है !

Dileepraaj Nagpal ने कहा…

makeup se shuru hue aur khan pahunch gye...bahut khoob sir jee

Aadarsh Rathore ने कहा…

अनुपम जी
खुशी हुई पढ़कर
आपका लेखन पहले की ही तरह रोचत है...