शुक्रवार, 10 अप्रैल 2009

मिडिल क्लास भगवान

बारि मथे घृत होई, सिकता ते बरु तेल,।
बिनु हरि भजन न भव तरिअ, यह सिद्धांत अपेल ।।
महाकवि तुलसीदास ने रामचरित मानस के उत्तर कांड में इन पंक्तियों का ज़िक्र किया है। जिसका अर्थ है कि हवा को मथने से घी बन सकता है, और रेत से तेल निकल सकता है, लेकिन बिना ईश्वर को याद किए इंसान इस भवसागर रुपी संसार को पार नहीं कर सकता। यानि ईश्वर ही सब कुछ है। इसके बगैर इंसान कुछ नहीं। लेकिन बदला ज़माना, बदला परिवेश, बदले चेहरे, और बदल गया चरित्र । अब भवसागर पार करने के लिए भगवान की नहीं, दो घूंट बाटली की जरूरत होती । औऱ खुद आदमजात खुदा हो जाता है। इस खुदा को अगरबत्ती नहीं सिर्फ चार कश श्वेत दंडिका के चाहिए वो भी सुबह सुबह। अर्ली मॉर्निंग। आखिर प्रेशर का सवाल है। ये खुदा अब तकिया छोड़ अखबार पढ़ने को बेताब है। जल्दी जल्दी सारी ख़बरें चाट लेंते हैं, न जाने कितने चटोरे हैं भगवान। और इसी बीच चाय समोसे हो जाएं फिर तो समझो भगवान की लॉटरी लग गई। ओए होए मजा ही आ गया (ये भगवान की फीलिंग है मेरी नहीं) । मजे की बात ये भगवान मिडिल क्लास हैं। मतलब जिनकी मार कभी कभी राक्षस भी लगा जाते है। तो छोटे मोटे राक्षसों पर विजय पाकर ये भगवान अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते हैं। इन भगवान की एक धर्मध्वजा भी हैं। वो और देवियों की तरह शर्मीली सी नहीं दिखतीं कैलेंडर में। वो बेहद आधुनिक हॉट एंड सेक्सी दिखने की होड़ में कभी कभी मार्केट चली जाती हैं। तो बेचारे भगवान की दो जून की बाटली पर ही बन आती है। मिडिल क्लास भगवान की मिडिल क्साल धर्मध्वजा। वैसे भगवान की फैमली का ये छोटा सा लेखा जोखा था। खैर अब चाय समोसा हो चुका । टाइम है आवारागर्दी करने का । एक बात और इन दिनों ये मिडिल क्लास भगवान भी मंदी की चपेट में हैं। सो स्वर्ग लोक से धक्का देकर इन्हे कहीं और ही भेज दिया गया है। इस समय खाली हैं। जिन कपोलों पर कभी लालिमा सी हुआ करती थी । वो कपोल अब रामचंदर सूखे के गालों की तरह गर्त में जा चुके हैं( रामचंदर एक बहुत ही सूखा सींक सा व्यक्ति, ये व्यक्ति सिर्फ हमारे शाहजहांपुर में ही पाया जाता है ) । चूंकि दौरे आवारागर्दी है। लेकिन भगवान हैं। इज्जत का सवाल है। लोग टोंकेंगे कि कैसे भगवान हो खाली रहते हो। बस इन्ही सब वजहों से आजकल साइडबिजनेस और लोगों पर फर्जीवाड़े का रौब झाड़ने के लिए बमपुलिस की जमादारी का टेंडर हाथ में ले लिया है। छोटे मोटों को हड़का कर दाम कमा लेते हैं। और हाफटाइम ही काम करके घर लौटने की चिंता सताने लगती है। इस हाफटाइम में भी पूरी हरामखोरी रहती है। खैर भगवान का अब घर लौटने का समय हो चुका है । बेहद कम पैसे लेकर लौटे भगवान को इस बात का ज़रा भी इल्म ना था कि आज उनकी बेलन से मार होने वाली है (ध्यान रहे, कि भगवान कभी अंतर्यामी थे, उन पर कोई संकट आने वाला होता तो उन्हें पहले से ख़बर लग जाती, लेकिन मंदी के दौर में हाइकमान ने उनसे ये ताकत भी छीन ली, जिसके चलते उनकी अंतर्यामी होने की ताकत जाती रही)।और वो ख़तरे को भांप ही न सके जो उन पर आने वाला था। घर के दरवाजे खुलते हैं। आवारागर्दी के दौरान कुकर्म किए वो मुंह से महक के रुप में वापस आ रहे थे । घर में घुसे ही थे कि गालियों की बौछार से कैलेंडर वाली माता ने उनका स्वागत किया। आ गए पीके। कुत्ते, कमीने हरामजादे। घर में नहीं खाने को, और अम्मा चलीं भुनाने को । घर में ढेला नहीं है और तुमने दारु की अती कर रखी है। कम्बखत कहीं के । बड़े आए भगवान बनने । इसी दौरान एक बेलन भी फेंक कर मार दिया। जैसे तैसे खोपड़ी झुकाकर बच पाए मिडिल क्लास भगवान। दौर ए अब्यूज़ जारी है। कैलेंडर वाली माता कहती हैं, हमें तो एक साड़ी कभी न लाकर दी। खूंटी देवी पर तो बड़े मेहरबान होते हो। सारी ख़बर मुझे पता चल चुकी है। दिन में कहीं और रात में कहीं और । तुम्हारे सारे कुलच्छनों का चिट्ठा मेरे पास है। अगर आइंदा से मेरी सौतन के पास गए तो तुम्हारे प्राण हर लूंगी (मालूम हो कि स्वर्ग में भी महिलाओं की तरह देवियों को आरक्षण दिया गया है, इस आरक्षण की वजह से कैलेंडर वाली माता की सारी दिव्य शक्तियां अभी तक बरकरार है, यही कारण है कि उन्होंने भगवान से प्राण हरने वाली बात कही) । खैर जैसे-तैसे प्राणों की प्यासी कैलेंडर वाली माता से छुटकारा मिला । अगेन गम गलत करने ठेका कच्ची शराब की दुकान पर जा पहुंचे। एक पाउच में ही टल्ली हो गए। पहले से जो पी रखी थी। कैलेंडर वाली माता के सदमे से उबरने के लिए और दिल की भड़ास निकालने के लिए, लोगों को गलियाने लगे । पब्लिक प्लेस पर दारू और ऊपर से गलियाना किसी बडी़ मुसीबत को दावत देने जैसा ही था। एक बार फिर याद दिला दें कि ये भगवान अपनी सारी शक्तियां खो चुके हैं, जिसके चलते उन्हें ये अंदेसा ही नहीं रहा कि वो किस मुसीबत में फंसने वाले है। पुलिस आई और बजाए चार पांच बेंत पिछवाड़े पर। अब भगवान लगे गिड़गिड़ाने। कैलेंडर वाली माता की दुहाई देने लगे। रिश्वतखोरों ने कुछ ले देकर छोड़ दिया। भगवान सोच रहे थे । आज ससुरा कुछ दिन ही अच्छा नहीं है। पहले धर्मध्वजा से पिटा और अब पुलिस से। अभी भी मानने को तैयार नहीं एक बीड़ी का बंडल खरीद ही लिया। घर के बाहर खड़े होकर आसमान में देखने लगे । सोच रहे थे कि शायद हाइकमान से बुलाबा आ जाए और मेरी स्वर्ग में फिर से बहाली हो जाए। इतने में उनके पुराने दोस्त रहे मान न मान मैं तेरा मेहमानाचार्य ऋषी टपक पड़े। कष्ट से घिरे भगवान को देखकर दारुण हो उठे। बोले भगवन अगर आप कहें तो में दुश्कर्मा जी से बात करुं वो ही आपकी बात ऊपर तक पहुंचा सकते हैं ( आपको पता होना चाहिए कि गर्मी के मौसम में मान न मान मैं तेरा मेहमानाचार्य ऋषी हमेशा छुट्टी पर निकलते हैं, इसी दौरान घूमते हुए उन्हे उनके पुराने मित्र मिले,­ ऋषी काफी सोर्स फुल हैं, अपनी पंडिताई के बल पर इन्होंने परलोक में एक नया फ्लैट लिया है वो भी कैश इन हैंड देकर) । उधर मिडिल क्लास भगवान पर कृपादृष्टि करने को आतुर ऋषी ने इतनी देर में कई सुझाव दे डाले। लेकिन उन्हे कोई रास न आया । उन्हे तो बस एक ही धुन थी। कि कैसे भी उनकी वो ताकतें वापस आ जाएं। जो खो चुकी थीं। लेकिन मंदी से त्रस्त स्वर्ग लोक उनका नाम रजिस्टर में लिखने को तैयार ही न था। क्योंकि भगवान की लतों के बारे में सब जानते थे । उनका खर्चा कौन संभालता। जब स्वर्ग लोक में थे तो बिल्कुल कुंवर साहब बनकर रहते थे उस समय कपोल भी लाल-लाल टमाटर से थे। एक दम हस्ठ पुष्ठ। मिडिल क्लास भगवान। अब कोई सुनवाई को तैयार न था बेचारे कुंवरसाब की कहने का मतलब है भगवान की सुनवाई को कोई तैयार नहीं था। अपनों में बेगाने से नज़र आते थे। हर कोई दुश्मन लगता था। लेकिन समझने वाली बात ये है वो तो भगवान थे । लेकिन हम तो आम हैं ऐसे में हमारी क्या दुर्दशा होती। जब भगवान ने भगवान को न छोड़ा तो हमारी क्या औकात। इसलिए ज़रा संभल कर भगवान बनने की कोशिश करें। नहीं तो खुदा के फेर में ज़िंदगी से जुदा न होना पड़ जाए। जय बजरंग बली।

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