शनिवार, 20 दिसंबर 2008

ताजमहल हूं मैं...


मैं ताजमहल
एक मोहब्बत का पैगाम
शाहजहां और मुमताज
की मोहब्बत का
मेरे नाम ने सिखाई
दुनिया को मोहब्बत
और सिखाया
भाईचारा
मुझे देखा है दुनिया ने
एक ऐसा ही ताज
मेरा भाई है
वो महाराष्ट्र की अंगड़ाई है
वो ताज है
मायानगरी का
वो ताज है
सपनों की नगरी का
वो ताज है
आमची मुंबई का
बीते दिनों ने
इसने इतना कुछ झेला
जो और कोई होता
तो कब का टूट जाता
बिखर जाता
सपनों का ये महल
आतंकियों का शिकार हुआ
ये दिन था २६ नवंबर 2008
इसके बाद
उन पूरी तीन रातों में
ताज ने देखा वो सब
जिसे देख हर किसी की
आह निकल गई
ताज की सुंदर छवि को
ऐसा चोट लगी थी उस दिन
कि तड़प आज भी बाकी है
लेकिन उसकी टूटी सांसों का
संसार अभी भी बाकी है
उसको चोट देकर वो समझे
टूटेगा हौंसला भारत का
लेकिन पिछले सौ सालों में
देखा उसने इतना था
कि तोड़ न पाए वो जज़्बे को
तोड़ न पाए साहस को
आज कर रहा है फिर स्वागत
जो न भूल सकेगा कोई
क्योंकि मैं ताजमहल हूं
एक मोहब्बत का पैगाम
देश को एक रखने का नामअनुपम मिश्रा

1 टिप्पणी:

मधुकर राजपूत ने कहा…

स्वागत करा रही है मुनाफे की जंग, बनिए की बुद्धि। नया साल करोड़ों का कारेबार है जी। इसे कोई फेमस होटल भला कैसे अनदेखा कर सकता है। आतंकवाद को मुंहतोड़ जवाब तो कमाई में तड़का ही लगाएगा। इसे ही तो कहते बिजनेस मैन, त्रासदी को भी भुना लिया।