गुरुवार, 14 जून 2012
कभी हम, कभी तुम...
कभी टकराना मुसीबतों से,
तो पता चलेगी सच्चाई ज़िंदगी की ।।
कभी खरीदना किसी के ग़म,
तो पता चलेगा खुशी का वहम ।।
कभी तोड़ देना बंदिशों को,
तो पता चलेगा आज़ादी का भरम।।
कभी सोचना गहराइयों से,
तो पता चलेगा हर झूठ का हरम।।
कभी सोचना किसी चोट के बारे में,
तो पता चलेगा असर-ए-मरहम ।।
कभी हम कभी तुम पर सोचना,
क्या आसान है ज़िंदगी ।।
कभी टटोलना वादों का गड्ढा,
तो पता चलेगा वादाखिलाफी का मीटर।।
कभी महसूस करना कर्म के असल को,
तो पता चलेगा ज़िंदगी का मुनाफा ।।
कभी खेलना किसी मज़लूम ज़िंदगी से,
तो पता चलेगी किसी जान की कीमत।।
कभी कूच करना पहाड़ियों का,
तो पता चलेंगी बुलंदियां सरहद की।।
कभी जाना तिब्बत और सियाचीन में,
तो पता चलेगा सियासत का फलसफा।।
कभी गुज़र जाना आंधी तूफानों से,
तो पता चलेगी उखड़ते कदमों की कुब्बत।।
कभी गंदी बस्ती से गुज़र भी जाना,
तो पता चलेगी हर दुर्गंध की कीमत ।।
कभी हम कभी तुम पर सोचना,
क्या आसान है ज़िंदगी ।।
कभी मुस्कुराना गम-ए-महफिल,
तो पता चलेगी सुखों की ताकत।।
कभी करना ठिठोलियां रंजिश में,
तो पता चलेगी हंसी की कीमत ।।
कभी गुज़रना बदनाम गलियों से,
तो पता चलेगी कौड़ी-ए-ईमान की कीमत।।
कभी सिसक लेना अंधेरी रातों में,
तो पता चलेगी एक साथ की कीमत।।
कभी टूट जाना किसी कांच सी,
तो पता चलेगी आईना होने की कीमत।।
कभी हम कभी तुम पर सोचना,
क्या आसान है ज़िंदगी ।।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें