गुरुवार, 31 मई 2012

कौड़ियों के भाव...

ज़िंदगी के सौदे में बिके हैं कई बार पर कौड़ियों के भाव पर कौड़ियों के भाव नीलाम हुनर भी हुआ पर कौड़ियों के भाव पर कौड़ियों के भाव तिजारतों में बिक गया रगों का खून भी पर कौड़ियों के भाव पर कौड़ियों के भाव लिखते मगर सच्चाइयां बचते हैं सचों से उनकी गली में हो गया इंसान कत्ल भी पर कौड़ियों के भाव पर कौड़ियों के भाव मजदूर कहीं वो बने श्रम बेचते रहे कीमत लगाई थी पर कौड़ियों के भाव पर कौड़ियों के भाव सजते रहे शरीरों पर बन किराए ए नगीना राशि मुश्त भी चुकाई पर कौड़ियों के भाव पर कौड़ियों के भाव दो जून की जुगाड़ों में कट गए दिन रात झुलसते रहे बदन पर छांव न मिली वेतन दिया उसे भी बड़ा सोच समझ कर पर कौड़ियों के भाव पर कौड़ियों के भाव न मोल था जज़्बात का बेमोल थी हंसी थोड़े रहम से बिक गया उनका शरीर भी पर कौड़ियों के भाव पर कौड़ियों के भाव

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