शनिवार, 23 जुलाई 2011

तुम

तुम एक रंग। जो बहारों सा दिखता है। तुम ख्वाहिश किसी मुकाम जैसी। तुम सांसों में शामिल वो ख्याल। जो हर दम तरन्नुम में मोहब्बत के अहसासों का नूर भरता गया। तुम शोख नादान भोली परी सी। तुम तो जिजीविषा का वो पुष्प हो जो दिन में खिलता है तो मौसम बहारों की पैरहन से ढंक जाता है। और जब तुम मुरझाती हो तो नीला आसमान भी कयामत बरसाने लगता है। तुम मेरे शब्दों से सजी वो रचना हो । जिसको मैने अपनी मोहब्बत की रोशनाई से लिखा है। तुम शीतल बर्फ सी, जो गर्म अहसासों को सर्द कर देती है। तुम मनोभावों में बसी वो मूरत हो जिसके दीदार से कायनात भी झूम उठती है। तुम तो खुशी का वो अश्क हो। जिसे मैने कभी आंखों से गिरने ना दिया। तुम सजल नयनाभिराम एक ऐसी कहानी हो जिसका हर अक्षर सिर्फ महसूस करने के लिए है। तुम वो लौह अहसास हो जिसने मेरी कमज़ोरियों से उबार कर मुझे मजबूत बना डाला। तुम वो साज़ हो जो मेरी ज़िंदगी में प्यार के बोल को अपना रुमानी संगीत देता है। तुम दर्द पर मरहम सी। तुम दुश्मनों के सीने पर खंजर सी। तुम सैलाब में सहारा सी। तुम रेगिस्तान में पानी सी। तुम अंधेरे में आफताब सी। तुम हरिवंश की हाला सी। प्रेमचंद की रचना सी। तुम मखमल सी कोमल, कपास सी नाज़ुक, छोटी बिटिया सी चंचल, बच्चों सी मासूम, गुलाब सी प्यारी, खेतों की हवा सी, गोमुख की गंगा सी, बहती जलधारा सी, हरे पेडों के जैसी, बहारों के मौसम जैसी, समुंदर सी गंभीर, हिमालय सी अटल हां तुम सिर्फ तुम।

1 टिप्पणी:

Brajdeep Singh ने कहा…

gurudev lagta hain man phir se kahin par atak raha hain ,ab ye shabd uske samne vyakt kar dte to sayad ab tak baat ban hi jaati
jhaam kavita