रविवार, 11 जुलाई 2010

बारह फट्ट-फट्ट, आठ परसीं चार गायब

टाइटिल उलझाऊ हो सकता है, लेकिन कहानी बेहद साफ है। एक दम शीशे सी उजली । बात दिनों की है, जब शायद वस्तु विनिमय का दौर रहा होगा। एक गांव में एक भठियारन ( पैसे या सामान लेकर खाना बनाने वाली महिला) रहा करती थी, उस दौर में मुद्रा अलग-अलग रुपों में प्रचिलित थी, नोट चलन में नहीं थे, लेकिन सिक्कों का चलन शायद रहा होगा। वो भठियारन राहगीरों के लिए खाना बनाया करती थी, एवज़ में राहगीरों से लेती थी, अपनी जरुरत का कुछ सामान, जो कि उसके लिए मुद्रा का कार्य करता था। वो भठियारन अपनी उम्दा पाक कला के कारण दूर-दूर तक मशहूर थी, लिहाज़ा बीवियों से ठुकराए हुए, समाज से ठुकराए हुए, या नहीं भी ठुकराए हुए लोग उसकी झोपड़ी में कुछ दमड़ी चुका कर उदर छुदा को मिटा लिया करते थे। कुछ लोग उसके शरीर की कीमत भी लगा दिया करते थे, और वो भी मना नहीं करती थी। लेकिन ज्यादा पैसे की लोलुपता ने उसके मन में कपट भर दिया था।
एक रोज़ की बात है, एक राहगीर जिसके पास पर्याप्त मात्रा में खाद्य सामग्री का कच्चा माल मौजूद था, लेकिन भोजन बनाना नहीं जानता था, इसलिए उसने उस भटियारन की झोपड़ी की ओर कूच कर दिया। दरवाजे पर पहुंचते ही, उसने अपनी फरमाइश भठियारन के सामने रख दी । और भठियारन ने कहा ठीक है, लेकिन खाना बनने में थोड़ा वक्त लगेगा, वो राहगीर वहीं भठियारन की झोपड़ी के एक दूसरे छोटे कमरे में बैठकर खाने का इंतज़ार करने लगा, सब्जी तैयार हो चुकी थी, और रोटियों के लिए आंटा भी गूथा जा चुका था। अब बारी थी, रोटियां सेंकने की। उस आंटे से बनने वाली रोटियों की तादात 12 थी। क्योंकि राहगीर ने बारह बार रोटियों की फट्ट फट्ट (हाथ से बेलने की आवाज़) की आवाज़ को सुना था, लेकिन जब राहगीर को रोटियां परोसी गईं तो रोटियां 12 की संख्या में नहीं बल्कि 8 की संख्या में थीं। राहगीर भौचक्का था, बोला क्या बीबीजी बारह “फट्ट फट्ट, आठ परसीं चार गायब” । पहले तो भठियारन को कुछ समझ नहीं आया, लेकिन जब राहगीर ने अकड़ कर उससे कहा कि मैने बारह बार रोटियां बेलने की आवाज़ को सुना, और तुमने आठ ही परोसीं, ये क्या घपला है। वो भठियारन सफाई देने लगी कि नहीं तुम्हें गलतफहमी हुई है। लेकिन वो राहगीर भी चालाक था और उसकी हरकतों को अच्छी तरह जानता था, वो उसकी रसोई की तरफ गया, और छिपा कर रखी गईं चार रोटियों को दिखाते हुए बोला कि ये वही रोटियां हैं, जो कि तुमने मेरे हिस्से में से चुराकर अपने पास रख लीं। गलत मैं नहीं था, गलत तुम हो अपने ईमान से।
तो कहानी का सार यही कहता है कि हिंदुस्तान की सियासत में बनने वाली रोटियां बारह फट्ट फट्ट हैं, जिनमें चार गायब हो जाती हैं, और पता तक नहीं लगता, जनता जनार्दन जानती है, कि सरकार की योजनाओं से जो हिस्सा उसे मिलना चाहिए या तो वो उस तक पहुंच ही नहीं पाता और अगर पहुंचता भी है तो आधा-अधूरा। सरकार के बीच बैठे चंद लोग भठियारन का रोल निभाते हैं, और हम राहगीर हैं, जो अपने हिस्से से टैक्स देते हुए भी अपने अधिकारों से वंचित रह जाते हैं। आंखों में जब लालच भर जाए तो उन्हें दमड़ी के सिवाए कुछ दिखाई नहीं देता। ऐसा ही हाल भारतीय राजनीति का भी है, यहां भठियारन भी है, और राहगीर भी।
भठियारन की आँखों में सिर्फ लालच भरा है, तो उसे सिर्फ दमड़ी दिखाई देती है, और राहगीर हमेशा की तरह बेचारा बना रहता है।
बिहार में हर साल आने वाली बाढ़ के बाद की कहानी भी ऐसी ही है, यहां बाढ़ के बाद अगर कुछ बचता है, तो सिर्फ किसानों के हाथों में रेत, खेतों में खरपतवार, और तबाही, पिछली बाढ़ के बाद दूसरे राज्यों से मिली मदद के बावजूद कई लोग अब तक बेघर हैं, उनके खेतों से अभी तक वो मनहूस रेत नहीं हट सकी है, जिसे पिछले साल की बाढ़ बहा कर अपने साथ ले आई थी। और अब अगर इस बार भी बिहार को इंद्र देवता का कोप झेलना पड़ा, तो नुकसान की सुनामी आ जाएगी। और मुआवज़े या मदद के रुप में वही “बारह फट्ट फट्ट आठ परसीं चार गायब” या फिर शायद इससे भी ज्यादा। हमें उस राहगीर की तरह जागरूक और बुद्धिमान बने रहना होगा, और चेताना होगा सरकार के उन नुमाइंदों को जो सफेदपोश भठियारन का किरदार निभा रहे हैं।

5 टिप्‍पणियां:

Brajdeep Singh ने कहा…

bhaisaab aaj hume aap ek lekkhak se jyada ek teacher lage
baat ko is tarike se samjhaya ke na samjhne wala bhi samajh gya
vichar to har koi acche rakhta hain magar unhe vyakt krna koi koi janta hain
aaj aapne un vicharo ko itni khubsurti se rakkha hain ki man prafullit ho gya hain
bahut sundar laga aapki ye rachan padh ke
aur hum kosis karenge ke hum bhi ek chalak rahgeer ban sake

Tara Chandra Kandpal ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Tara Chandra Kandpal ने कहा…

भटियारिन और फट-फट का समयोजन राहगीर की क्षुधा मिटाने का सम्पूर्ण सामान है| आयोजन और प्रयोजन का प्रयोग बखूबी किया आपने| अब समझने वाले को इशारा ही बहुत है!

Unknown ने कहा…

कहानी और कहानी से दी गई नैतिक शिक्षा दोनों ही उम्दा हैं।

Unknown ने कहा…

maja aa gaya..!!!