शनिवार, 30 जनवरी 2010

उनकी आज़ादी का कारण थी संडास-ए-नाजी

काम जो बेहतर लगे। वो करो। ऐसा कतई न करो जो दूसरे के मन का हो। या यूं कहें कि जो हमने सोचा वही बेहतर है। अपनी बेहतरी से गद्दारी न करो। दरअसल नाजियों की जिस सेना ने यहूदियों समेत कइयों को अपने अत्याचार का शिकार बनाया । उस सेना को कई यहूदियों ने अपनी बेहतरी साबित करके ठेंगा दिखाया । और इसका अहसास उन्हें कतई नहीं हुआ। कुछ यहूदी उनके बंदी तो थे। लेकिन उनके अत्याचारों से मुक्त थे। ये उनके दिमाग का ही कौशल था। कि हिटलर की सेना उनका तियां पांचा नहीं कर पाई। क्यों और कैसे ये सवाल आपके दिमाग में जरुर आरती कर रहा होगा।
तो सुनिए अत्याचारी होने की सुरती खा बैठे हिटलर ने बंदी खाने में सैकड़ों संडासों का गठन कराया था। उन संडासों के लिए कई कर्मचारियों की नियुक्ति की गई थी। ये नियुक्ति गुलाम लोगों में से ही की गई थी। करे कोई भरे कोई की तर्ज पर हिटलर चाहता था। कि उसकी और उसकी सेना की करनी का खामियाजा कोई और ही भुगते। यानि उनके बंदी। उस सामूहिकत संडास में कई बंदियों को अलग-अलग काम सौंपा गया था। जैसे किसी को बटोरने का। किसी को पानी डालने का तो किसी को राख डालने का। उन संडासों को जो आकार दिया गया था। वो प्राचीन कमोड का एहसास कराता था।
सीमेंट की बैंचों में पिछवाड़े के आकारानुसार होल हुआ करते थे। कई फिट लंबी बैंचों में कई सारे होल। जिन पर कई लोग एक साथ अपना पिछवाड़ा टिका सकते थे। इस बगैर पैसे की नौकरी का शुरुआती दौर ही था। कुछ लोगों को काम में मजा आया तो कुछ को नहीं। जिन लोगों को काम पसंद नहीं आया । उन्होंने नाजियों के संगठन में दूसरी बिन पैसे की नौकरी ढूंढ ली। जैसे बाल साफ करने की । बढ़ई गिरी की । बंदूक के लिए कारतूस तैयार करने की। लेकिन जिन बेचारों ने अपना डिपार्टमेंट चेंज किया। उन्हें दिनभर एक गलती के लिए दस कोड़ों की सजा दी जाती थी। ऐसे में मौज उनकी थी। जो बदबू सूंघ कर भी अपने कार्य को तल्लीनता से किया करते थे। हिटलर उन्हें कोई सजा नहीं देता था। जो संडास साफ किया करते थे। फिर चाहे वो अपने काम को सफाई से करें या नहीं। संडास साफ करते-करते। इस दौरान एक जमादार यूनियन का गठन भी हो गया। जिसका आभास हिटलर के कानों तक नहीं पहुंचा। वो सामूहिक संडास विरोध के विचारों का अड्डा बन गई। क्योंकि जो लोग दूसरे डिपार्टमेंट में नौकरीशुदा थे। उन्हें हिटलर के हंटरों से ही फुरसत नहीं मिल पाती थी। जबकि जो संडास की सफाई करते थे। उनके पास अपने कार्य को निपटाने के बाद काफी समय बच जाता था।
क्रांतिकारी विचार ही किसी मुल्क की आज़ादी का सबब बनते हैं। और लाखों का हत्यारा हिटलर इस बात को महसूस नहीं कर पाया। संडास में विचारों का पनपना जारी रहा। और एक समय वो आया जब हिटलर की योजनाओं के खिलाफ जमादार यूनियन एक ताकत बनकर उभरी। उस यूनियन के कई बुद्धिजीवियों ने प्रतिस्पर्धा के एक युग की शुरुआत कर दी। तानाशाही के माहौल में ये कदम वैचारिक आज़ादी से कम न था। ज़रा सोचिए ये विचार उन लोगों के दिमाग में कौंधे । जो पेशे से संडास की सफाई करते थे। उनका काम जरुर गंदा था। लेकिन विचार उनकी ताकत थे। इससे ये बात भी चरितार्थ होती है, कि कमल दलदल में ही खिलता है। खैर हिटलर के उस जेलखाने में अब लोग संडास की नौकरी को ही तरजीह देने लगे। और धीरे धीरे संडास के सफाई कर्मियों की तादात भी अच्छी खासी हो गई। जैसे-जैसे लोगों की तादात बढ़ती गई वैसे-वैसे योजनाओं का विस्तार भी होने लगा। विचारों का विस्तार भी उज्ज्वल भविष्य की ओर ही संकेत करता था।
इस बीच हेयर कटिंग डिपार्टमेंट से कई लोगों ने अपना ट्रांसफर घूस को आधार बनाकर संडास डिपार्डमेंट में करा लिया था। ये लोग उन लोगों की चांद मूड़ा करते थे जिन्हें हिटलर मार दिया करता था। हिटलर दूरदर्शी था। वो उन बालों का इस्तेमाल कपड़ों इत्यादि की बुनाई में करवाता था। लेकिन उसकी दूरदर्शिता इतनी नहीं थी। कि इस आधार पर विश्व विजेता बन जाता । अगर ऐसा होता तो महज संडास में पैदा होने वाली क्रांतिकारी योजनाएं। उसकी हार का कारण न बनतीं। और यही हुआ भी। एक रोज़ उस जेल खाने में विद्रोह की ऐसी आग फूटी जिसके सामने हिटलर बेबस हो गया। और संडास-ए-नाजी से निकल आया उनकी आज़ादी का रास्ता। ये संडास में पैदा हुए बेहतर विचारों का ही नतीजा था। ये वो विचार थे जो उनके अपने थे। यानि संडास में काम करो तो सजा नहीं मिलेगी। सजा नहीं मिलेगी। तो वक्त मिलेगा क्रांतिकारी विचारों का। और जब विचारों में क्रांति आएगी तो आज़ादी मिलेगी।

5 टिप्‍पणियां:

Rajeysha ने कहा…

बेहद जानकारीपूर्ण पोस्‍ट, धन्‍यवाद।

kshama ने कहा…

Uff! Wo bhi kaise din rahe honge bandiyon ke liye!

Madhukar ने कहा…

अरे भाईसाब, इसे इसीलिए शौचालय कहते हैं।

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

तथ्यपरक पोस्ट. बधाई.

Tara Chandra Kandpal ने कहा…

बेहतर लिखा मेहतर...

यार कहाँ-कहाँ से खबर निकाल लाते हो यार! मानना पड़ेगा..