रविवार, 15 मार्च 2009

मेरी होली तो बस ऐसी ही है


नई सुबह, नया उजियारा
नए से रंग, लगे हर कोई प्यारा
दर पर दस्तक देती होली
प्यार और ठिठोली
इन रंगों में रंग दो सबको
हो जाओ सब अपने
ये रंग आज सबको रंग देंगे
उल्लास के रंग से
हर्ष के रंग से
उमंग के रंग से
तरंग के रंग से
कुछ ऐसी ही रंगत भरती है ये होली
ये रंग भेदभाव नहीं जानते
वो तो बस लोगों को नए रंग में
रंग देना चाहते हैं
ये रंग ही नूर हैं
जो रोशन करेंगे सारी दुनिया को
आज ऐसी ही खुशी पूरे भारत में हो
हर कोई गोपाल बने
गोपी बने, ग्वाला बने,
और बन जाए मां यशोदा, मां देवकी......
लेकिन आज
अधूरी मेरी होली है
मेरी दुनिया
बेनूर और बदरंग है
मेरे सपनों का संसार
आज सिर्फ एक सपना है
मुझ पर आतंक का साया है
खून के छीटे हैं
जो बंदरंग कर रहे हैं
मेरे तन को
मेरे मन को
मेरी आपके ही जैसी
एक मां थी
एक पिता थे
एक भाई था
एक बहन थी
और एक छोटा बेटा
जो अब एक
ख्वाब बन चुके हैं
वो आज नहीं हैं
मेरी होली उनके बगैर होगी
ये दर्द मुझे
मानवता के उन
दुश्मनों से मिला
जो रिश्तों को नहीं मानते
जो आतंक को जानते हैं
जो धर्म नहीं जानते
अधर्म को फैलाते हैं
उनका धर्म
तो सिर्फ लोगों की मौत है
वो लाल रंग तो जानते हैं
लेकिन सिर्फ खून का
वो होली तो खेलते हैं
लेकिन सिर्फ लहू से
वो इंसान तो हैं
लेकिन इंसानियत के दुश्मन हैं
दर्द आज भी, बहुत है
जो टीस देता हैं
रह रह कर सताता हैं
मेरी होली तो बस ऐसी ही है
बस ऐसी ही
क्योंकि मेरी होली का रंग
लाल है
मेरे अपनों के लहू से

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